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________________ ४.१०.१०] हिन्दी अनुवाद हयग्रीवके मन्त्री द्वारा हयग्रीवको ज्वलनजटीके साथ युद्ध न करनेकी सलाह __मलयविलसिया यदि शत्रु समान शक्तिवाला, वीर एवं पराक्रमी हो तब उससे सन्धि कर म्रान्ति दूर कर लेना चाहिए। यदि शत्रु दैव एवं पराक्रमकी अपेक्षा समान हो, तब नीतिशास्त्रके जानकारोंने बलवान्को ही पूजनीय बताया है। हे चक्रधर, विद्वानोंने यह भी कहा है कि दोनोंमें-से यदि कोई हीन भी हो, तो वह भी मतिवान् एवं सरागी राजाओं द्वारा सहसा ही दण्डनीय नहीं होता। जिस प्रकार ५ हाथी की चिंघाड़ उसके अन्तर-मदकी तथा प्रातःकालीन किरणें उदयाचलमें आनेवाले सूर्यकी सूचना देती हैं, उसी प्रकार पुरुषके आचरण उसके मनको कह देते हैं तथा लोकमें होनेवाले उसके ( भावी) आधिपत्यको प्रकाशित कर देते हैं। जिस कोटि-भट बलवान् (त्रिपृष्ठ ) ने मृगारिपंचानन सिंहको मात्र अपनी अंगुलियोंसे ही प्राण-वियुक्त कर डाला, लीला-लीलामें ही कोटिशिला' को चलायमान कर दिया और उसे छातेके समान जहाँ-तहाँ घुमा डाला, विद्याघराधिपति ज्वलन- १० जटीने जिसके घर पहुंचकर स्वयं ही जिसे सम्मानित किया। विविध सेनाओंसे युक्त उस ज्वलनजटी तथा त्रिपृष्ठके भटों द्वारा विरचित संग्राममें आप किस प्रकार जीतेंगे ? मैं रथांग लक्ष्मी रूपी विद्यासे संयुक्त हूँ, इस प्रकार आप व्यर्थ ही गर्व करके मूढ़ मत बनिए । धत्ता-अरे, मूढ़मति तथा इन्द्रियोंके वशवर्ती कुपुरुषोंके विषयमें क्या कहा जाये ? ( अर्थात् उनकी सम्पत्ति परिणाम कालमें अस्थायी एवं दुखद होती है ) किन्तु जो (इन्द्रियविजेता एवं ) विवेकी जन हैं उनकी श्री-लक्ष्मी, परिपाक-कालमें दुखोंको नष्ट कर ( स्थायी ) सुख प्रदान करनेवाली होती है ।।७९|| अश्वग्रीव अपने मन्त्रीको सलाह न मानकर युद्ध-हेतु ससैन्य निकल पड़ता है मलयविलसिया "आप विज्ञ हैं, अत: मानको अनिष्टकारी मानकर आप अहंकार न करें और ( युद्ध न करने सम्बन्धी ) मेरी सलाह मान लें।" इस प्रकार ( अपनी सलाहका) परिणाम स्पष्ट रूपसे जानकर वह मन्त्री मौन धारण कर बैठ गया, क्योंकि जो बुद्धिमान होते हैं, वे बिना प्रयोजनके अधिक नहीं बोलते। जिस प्रकार अन्धकार-समूहका हनन करनेवाले तथा लोक-प्रकाशक सूर्य-किरणोंके दर्शनमात्रसे ही नेत्रविहीन नर उल्लूके समान ही काँप उठता है, उसी प्रकार उस मन्त्रीकी सलाह द्वारा अज्ञानान्धकारसे आच्छादित मतिवाला वह कुटिल-बुद्धि अश्वग्रीव प्रतिबुद्ध न हो सका। _मन्त्रीके वचनोंको हृदयमें विचारकर तथा नेत्रोंको माथेपर चढ़ाकर वह हयकन्धर-अश्वग्रीव हथेलियोंसे पथिवीको पीटता हआ तथा उस ( मन्त्री ) का विरोध करता हआ ( इस प्रकार) बोला-"जिस प्रकार उपेक्षा करनेसे रोग बढ़ जाता है और समय पाकर वह प्राण ले लेता है, उसी प्रकार शत्रुओंका नाश करनेवाले शत्रुको बढ़ावा देना भी गुणकारी नहीं है।" इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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