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वड्डमाणचरिउ
[४.७.१मणुवहो गले लग्गी अवलोभवि को ण सुमइणिय-मुहि करु ढोगवि। अइउवहासु करइ गोलच्छहु
गलि मणिमाला इव जय-पुच्छहो। एयहँ मज्झे सयल-खयरेसहँ जासु देहिं आएसु सुवेसहँ । भू भंगेणे सो वि णमि रायहो करइ कुलक्खउ गरुडुव नायहो । पइँ जमराय-सरिस मण कुवियए एक्कुवि खणु दिहि रिउण जियए। इय मुणंतु पई सिहुँ सो सामिय किम विरोहु विरयइ गय-गामिय । अहो अहवा अभाण मइवंतहँ वुद्धिवि परिखिज्जइ गुणवंतह । सिहुँ बंधवह रणंगणु रुधिवि इत्थु णायपासहिं णिव बंधिवि । वहु वर जुवलु रसंतउ आणहँ तुम्ह मणोरह लहु सम्माणहँ । घत्ता-उटुंतई लिंतई पहरण है हय खयरई अणुणंतउ।
हयकंधरु दुद्धरु करे धरेवि पमणइ मंति गवंतउ ॥ ७७ ॥
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मलयविलसिया किं णिकारणु
पहु कुप्पहि भणु। कहिं गय तुह मइ
मुणिय मुवण-गइ। कोउ मुएविणु अण्णु महाहिउ मणुयहो आवय-हेउ हणिय हिउ । तण्ण करइ धीरत्तणु पहणइ
मई विहुणइं मूवत्तणु पयणइ । इदिएहिँ सहु तणु तावंतउ
विस-संताउ वअइ-पसरंतउ । कोउ होइ पित्तजर-समाणउ माण-विहंडणु दुक्खरमाणउ । जो पए-पए णिकारणु कुप्पइ
अहणिसु हिययंतर संतप्पइ । णियजणोवि सहुँ तेण सहित्तणु ण समिच्छइ पायडिय-समत्तणु । मंदाणिल-उल्लसिय-कुसुम-भरु - किं सेवियइ दुरेहहिं विस-तरु । सुंदर रक्ख समिच्छिय सिद्धिहो जल-धारा-लच्छी-लइ विद्धिहो। खंति भणिय विबुहहँ सप्पुरिसह सुहि बंधव-यण-पयणिय-हरिसहँ । जो पहु विक्कम वइरि-वियारणु सोमुवि कोविण सेयहो कारणु । धत्ता-गज्जतई जंतई णहे घणई अइलंघिवि हरिणाहिउ।
णिक्कारणु दारुणुं णिय तणुह किं ण करइ णिहियाहिउ ।। ७८ ॥
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२. D. भंगण । ३. J. गुं। ८. १. D. J. V. कण्ण । २. D. दिएहिं । ३. D.°य । ४. V. णिक्कारण णिय तणुहे।
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