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________________ ४.७.४] हिन्दी अनुवाद क्षुब्ध हो उठे, मानो ( साक्षात् ) जनपदों ने ही कलकल मचा दिया हो। अथवा प्रलयकालीन वायुसे लवण-समुद्रका जल ही क्षुब्ध हो उठा हो। मारे गये शत्रुओंके रक्तसे मदोन्मत्त चित्रांगद नामक योद्धा अपने दृढ़ अग्रदन्तोंसे अधरको चबाता हुआ तथा बायें हाथसे चित्र-विवित्र चित्तल १० ( एक विशेष हथियार ) का स्पर्श करता हुआ तत्काल ही उठा। (पुनः ) उसने पसीनेके स्वेदकणोंसे परिपूर्ण अपने गण्डस्थल, भुजयुगल एवं वक्षस्थलकी ओर झाँका। रण-रोमांचोंसे साधित कायवाला भीम नामक योद्धा भी भीम-दर्शनवाला ( देखनेमें भयंकर ) हो गया। घत्ता-भयसे भावित परबलको झुकानेवाला, कायरजनोंके लिए भयंकर तथा विद्या एवं भुजबलसे गर्वित भयंकर नीलकण्ठ भी ।।७५॥ नीलकण्ठ, अश्वग्रीव, ईश्वर. वज्रदाढ, अकम्पन और धूम्रालय नामक विद्याधरयोद्धाओंका ज्वलनजटी तथा त्रिपृष्ठके प्रति रोष-प्रदर्शन मलयविलसिया तीनों लोकोंका मर्दन करनेवाली गर्जनासे भुवनको व्याप्त करता हुआ तथा खग हाथमें धारण कर वह ( नीलकण्ठ ) भी उठा। गजदन्तों द्वारा शत्रुजनोंके वक्षस्थलको घायल कर देनेवाला तथा मणि-निर्मित कुण्डलोंसे मण्डित गण्डस्थलोंवाला ( स्व ) कुलदीपक वह हयग्रीव क्रोधित होकर अपने कर्णोत्पलों द्वारा पृथ्वीको ठोकने लगा तथा पद्माकरोंपर समर्पित पादवाला एवं सूर्य-तेजके समान दुनिरीक्ष्य वह ५ हयगल-अश्वग्रीव अपने विविध प्रतापोंसे दिशाभागोंको भरता हुआ, अपने क्रोधसे जन-संहारका विस्तार करने लगा। युगल चरण-कमलोंसे नभस्थलको पकड़नेवाले श्रेष्ठ खङ्गसे भूषित दक्षिण हस्तवाले, दुस्सह कोपरूपी पवनसे व्याप्त ईश्वर एवं वज्रदाढ़ नामक दोनों योद्धागण ( जब ) एक साथ ही शत्रुविद्याधरोंके साथ उग्रतापूर्वक जूझनेके लिए तत्पर हुए, तब साथियों द्वारा जिस-किसी प्रकार रोके १० जा सके। "दीर्घकाल बाद मुझे यह अवसर प्राप्त हुआ था, किन्तु दुर्भाग्यरूपी नेत्रोंने उसे भी छीन लिया।" इस कारण रूसकर भी नृपति अकम्पनके हृदयका अदृश्य क्रोध नष्ट हो गया। ( ठीक ही कहा गया है कि )-चंचल बुद्धिवाला सभामें बैठा हुआ भी क्रुद्ध हो उठता है, किन्तु धीर-वीर पुरुष ( वैसा ) नहीं ( करते )। ___ घत्ता-सभाके क्षोभको उपलक्ष्य कर तथा देखकर, साक्षात् शनीचर अथवा यमराज (अथवा काल शिखर )के समान धूमालय नामक विद्याधर मात्सर्य पूर्वक बोला ॥७६।। हयग्रीवका मन्त्री उसे युद्ध न करनेको सलाह देता है ____ मलयविलसिया वसुन्धराका पोषण करनेवाले हे हरि कन्धर-अश्वग्रीव, आप मुझे वह गोपनीय ( कार्य ) बताइए जो आपको असाध्य लग रहा हो। हे अश्वग्रीव, (आप) व्यर्थ ही क्यों क्षीण हो रहे हैं ? ( यदि आप आदेश दें तो) धनदायिनी इस पृथ्वीको उठाकर मकरगृहमें फेंक दूं ? राजा ज्वलनजटी कामीजनोंके अभिमानका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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