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वड्डमाणचरिउ
[४. ५.८णं जणवय-उप्पाइय कलिलई खय-मरु-हय लवणण्णव-सलिलई। चित्तंगउ चित्तलिय तुरंतउ
हय-रिउ-लोहिएण मय-लित्तउ । उट्ठिउ वाम-करेण पुसंतउ
दिढ-दसणग्गहिँ अहरु डसंतउ । सेय-फुडिंग-भरिय-गंडत्थलु
अवलोइउ भुवजुउ वच्छत्थलु । रण-रोमंचई साहिय-कायउ
भीम भीम-दसणु संजायउ। घत्ता-भय भाविय णाविय परवलण कायर-जण मं भीसणु ।
विजा-मुँव-बल गन्वियउ णीलकंठु पुणु भीसणु ।। ७५ ।।
भुवणु भरतो
मलयविलसिया उट्ठिउ सहें
तिजय-विम।
खग्गु धरंतो। अरि-करि-दंतणिय-वच्छयलें मणि-कुंडल-मंडिय-गंडयलें। णिय-कण्णुप्पलेण हयगीवें
महि-ताडिय-कोवें कुल-दीवें। पोमायरहँ समप्पिय-पायउ
भूरि-पयाव-भरिय-दिसि-भायउ । वित्थरंतु कोवेण जणक्खउ तरणि वहुउ हयगलु दुणिरिक्खउ । ईसर-वजदाढ वेण्णिवि जण
सहुँ अहियाहँ खयर-जुज्झण-मण । पय-पयरुह-जुव-गाहिय-णहयल असि-वर-भूसिय-दाहिण-करयल । दूसह-कोव-पवण-परिवारिय
सहयणेहिं कहविहु विणिवारिय । संपत्तावसरु विहउ कालें
पडिगाहिउ णयणेण विसाल। इय रुसेवि णं कोउ पणठ्ठउ णिवइ अकंपण-हिया अदुट्ठउ । कुप्पइ चंचल-बुद्धि सहतर धीरु कयाविण णिरु णिविसंतरे। घत्ता-उवलखेवि दिक्खिवि खुहियसह णं पञ्चक्खु सणिच्छरु ।
धूमालउ कालउ कालसिहुँ पभणई खयरु समच्छरु ।। ७६ ॥
'भो हरि-कंधर कहि महु गुज्झं किं मुहियइ झिजहि धणदाइणि जलणजडीसहो सुव महि-मंडण
मलयविलसिया
धरिय-वसुंधर । जंजे असझं। किं मयरहरे घिव मिलइ मेइणि । कामुव-जण-मण-माण-विहंडण ।
३. J. V. भुवलगन्वियउ। ७. १.J. V. तो।
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