________________
८२ वड्डमाणचरिउ
[४. २.३बल-लच्छी -पयाव-मइवंतहिँ
चंदणोल रयणेहि व कंतहिँ। खयराहिवहो भुवणे 'उक्कंठिहिँ वंदिउ पय-जुउ विजय-तिविट्ठिहिँ । थट्ट गुणाहिँ वो विण महंतउ गुरुयणे होइ सुयत्थ-मुणंतउ । अक्क कित्ति-तणु आलिंगविणु णिब्भर णिय-लोयण-फलु लेविणु । तहि अवसरि रोमंच-सहिय सुव विजय-तिविट्ठ वेवि स-हरिस हुव । पिय-बंधव-संसग्गु ण कहो मण करड हरिस भो भोउव तक्खण। एत्थंतर णर-खयराहीसह
परियाणिवि मणुपर-णर-भीसहँ । चवइ पयावइ-मंति वियक्खण होइ महामइ पर-मण-लक्खण । जो चिरु पुरिस-णेह-तरु छिण्णउँ वहु-कालेण गलंतें भिण्णउ । तं पई पुणु दसण-जलधरिहिँ संचिवि वड्ढारिउ अणिवारहिँ। घत्ता-केवलु लहिं सुउ कहि परम-सुहु जिह मुणि लहइ विउत्तउ ।
दुह-धंसणि दंसणि तुह तणइ तिह णरेवि संपत्तउ ॥७२॥
10
मलयविलसिया तं सुणिऊणं
सिरु धुणिऊणं । भणइ अभीसो
खयराहीसो। एरिसु वयणु वियार-वियक्खण मा मंति-वर पयंपि सुलक्खण । चिरु आराद्धि रिसहु अणुराएँ कच्छ-णरेसर-सुव-णमि-राएँ । फणिवइ-दिण्ण-खयर-सिरिमाणिय णिस्सेसहिँ णरणाह हिँ जाणिय । हउँ पुणु एयहो आण-करण-मणु जं भावइ तं भणउ पिसुण-यणु । पुव्वक्कमु सप्पुरिस ण लंघहिँ
कज उत्तरुत्तरु आसंघहि । इय संभासिवि खयर-णरेसर मउड-किरण-पच्छइय-दिणेसर । दूय-भणिय विवाह-विहि विरयण कय-उज्जम आणंदिय सुरयण। णिय-णिय-णिलइ पइठ्ठ सपरियण वेवि विसुद्ध वियारिय-अरियण । घरे घरे जुवइहिं गाइय मंगल विणिवारिय-खल-पयणिय-घंघल । कर-कोणाहय-पडह समंदल
कहिंमि न कीरहिं केणवि कंदल । घत्ता-पवणाहय-महधय-चिधचय पिहिय-दिवायर घर घरे।
पञ्चंतहँ संतहँ वहु यणहँ मुह-सररुह-रय-महुवर ।। ७३ ।। २. १. D. °टिहि । २. D. भाव । ३. V. परणत्तीसहं, D. परणरभीसहं । ३. १. D.J. V. करकेणाय :
10
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org