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________________ सन्धि ४ 10 गुणभूवहीं दूवहीं वयण सुणि जलणजडी वि समायउ । अइ सरसहिं दिवसहिं परिगएहि केहिमि सुह-गुण-भायउ॥ मलयविलसिया तहिं विउलवणे पोसिय-वि-गणे। 'बल-परियरियउ ठिउ गुण-भरियउ। सुणि तहो वत्त पयावइ णिग्गउ तहो दंसण-णिमित्तु णं दिग्गउ । दाहिण-वाम-करेहि विहूसिउ विहि सुएहिं वंदिणहि पसंसिउ । बहुविह वाहण-रूढ णरेसहिं रयणाहरण धरेहिं सुवेसहि । परियरियउ पहुपत्तु तुरंतउ राउ वणंतर हरिसु करंतउ। णिय विजा-बल विरइय मणहर विप्फुरंत मणि-गण-भासिय हरे। संट्ठिय वरखयरंगण-णेत्तहिँ मोहिय-णरवर-खेयर-चित्तहिँ । सहुँ पडिउट्टिएण खयरेसें दिट्ठ परिंदु स-समाण संतोसें। जाणु मुशवि लहु विउल-णिय-विहि णियड गरप्पिय कर अवालव हि । अवरुप्परु सम्मुह होएप्पिणु । पणय-भरिय-णयणहि जोएविणु। दोहिमि णरवर-णहयर-णाहहि स-सरसहि णिरु दीहर-वाह हि। आलिंगणहि सुहा-रस-धारहि सिंचिउ संबंधियरु वियारहि। जिष्णुवि अंकुरियउ जिह सोहइ केऊरंसुवेहि मणु मोहइ । धत्ता-पउरमइहे णिवइहे परिणविउ अक्ककित्ति दुल्लक्खहिँ। सुह-जणणे जणणे तहिँ समएँ अण भणिया वि कडक्खिहि ॥ ७१ ॥ 15 कुलबल-वंतह विणउ णिसग्गउ मलयविलसिया होइ महंतह। कय अववग्गउ। ४. D. J. मणे । १. १. J. विल । २. D. वहूसिउ, V. वहूउ, J. वहूसिउ । ३. D. V. स । ५. D. V.सि । ६. J. V. भं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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