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________________ ७९ ३. ३१.१५] हिन्दी अनुवाद घत्ता-वह खेचरेश ( इन्दु नामक दूत राजा प्रजापतिका सन्देश) लेकर शीघ्र ही वापस १५ लौट आया। मैं-नेमिचन्द्र, लक्ष्मीगृहकी शीतल छायाके समान श्रीधर मुनिके यशोधाम चरणकमलोंका वर्धमान स्वामीके चरित सम्बन्धी अपनी मनोकामनाकी पूर्ति हेतु स्पर्श करता हूँ ॥७०॥ तीसरी सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुण-समूहसे परिपूर्ण विबुध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा विरचित तथा साधु स्वभावी श्री नेमिचन्द्र द्वारा अनुमोदित श्री वर्धमान तीर्थकर देवके चरितमें बल-वासुदेवकी उत्पत्ति का वर्णन करनेवाला यह तीसरा परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ सन्धि-३ ॥ आश्रयदाता नेमिचन्द्र के लिए कविका आशीर्वाद जनोंमें सन्तोष उत्पन्न करनेवाला, शंकादि दोषोंको त्याग देनेवाला, दस प्रकारके श्रेष्ठ धर्मोके पालनेमें दक्ष, मिथ्यात्व-पक्षको ध्वस्त कर देनेवाला, कुलरूपी कमलके लिए दिनेशके समान, कीर्तिरूपी कान्ताका निवासस्थल तथा शुभमतिवाला वह नेमिचन्द्र (आश्रयदाता) किसके द्वारा प्रशंसित न होगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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