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________________ 5 10 5 10 ७६ सामि तुह कुलि पढम बाहुबलि देउ कच्छावणीस सुव-मि- णिवासु तुम्ह चिरु पुरिस नेहु जेण ओवि हुँ त लिंग मुहु मुहेण तो तणतणूरुहु अक्ककित्ति तो जोग्गड वरु अलहंत एण पुच्छिउ संभिण्णु निमित्त-दच्छु सो भइ णिणि जिह मुणि-मुहासु एउ हूउ पयावर भरहवासे घत्ता- जण-रायराउ भरहुवि अजेउ । कुल-सिरि-मंडणू खयराहि वासु । खयराही सुविणयवंतु तेण । विणयालंकि उ गयण-यल- गामि । तुह कुसल -वत्त पुच्छइ सुहेण । सुय अवर सयंपह पउर कित्ति । जलणजडीसें तप्पंत एण । कय-पंचर महमइ हियइ सच्छु । आयणिउं मई रंजिय-बुहासु । राहु वि पिह- संपण्ण-सासे । --तहो विजय तिविट्ठ सुअ उक्किट्ठे सयल गुणहिँ संपुण्ण । बल - हरि-गामाल ससिदल-भाल पुत्त पुराइय-पुण्ण ।। ६९ ।। इह आसि पुरा भव धविय बंदि एव्वहिं हु खयराहिवइ एहु एहो समरंगणे तोडि सीसु होहइ तिखंड सामिउ तिविद्रु यो दिज्जइ भिंतु ते तु तासु पसाएँ भुवणि भव्व इ आएसिय संभिण्ण-वत्त खयरेसें हउँ पेसियउ दूर तुह पासि देव कल्लाण-हेउ तहिँ अवसर राएँ भूसणे हिं तो देहु महा- हरिसेण भिण्णु - तो राहिव - णिमित्त जिइ कइ वय-दिणह मझ ३०. १. J. ̊ठु । Jain Education International asमाणचरिउ ३० ३१ [ ३.३०. १ विजयावह विसाहनंदि । हयगीउ नीलमणि - सरिस - देहु | भंगुरिय-भाल - सलवट्ट-भीसु । चक्कालंकिय-करुणिव- वरि एउ कण्णा-रयणु महोच्छवेणं । भुंजे सहि उत्तर - सेट्ठि सव्व । आयणेवि पीणिय-सुवण-सुत्त । णामेण इंदुभासिविसरूउ । थिम कवि इय भणिवि भेउ । सम्माणिउं तमणिद्दसणेहिं । सोवाणु संदेसुदिष्णु । परियाणिवि दूएँ राय-चित्तु | तुहँ तणईं णयरि अरियण दु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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