SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 15 5 10 ७४ लीलन णिज्जिय सुर-करि करे हिं पसरांति उद्ध-भुव-दंड-जाम निय भुव - जुव वीरिउ पायडेवि सुनंतर यि जसु गीयमाणु पइसिवि परमाणं देण गेह पण विणयालंकि तिविद्रु भालयलि णिवेसिवि कर सिरेण पढमउ परिरंभिवि लोयणेहिँ पुणु गा करे विणु भुजुएण आलिंगिय विणिव णिय-तणूव हुआ पुणुवि णिविवेवि पुच्छिउ णिवेण बलु वाहरेवि सविणणंतु महंत-तेउ विउ परिसंठिउ वासुएउ asमाणचरिउ २८ उचाइ कोड़ि -सिला करेहिं । कि साहुया 'देवे हि ताम | उ यि पुरवरे वाहुडेवि । अणुराय-गयहिँ ससहर- समाणु । राहो चूला -पय-मेह | सामंत- मंति-लोएहिं दिट्ठ । मउडग्ग- लग्ग मणि भाँसिरेण । संदरिसिय हरिसंव-कणेहिँ । रण परियाणि सुरण । सुर-सीमंतिणि-मणहरण- रूव । पहु- पीढ पासि सहरिस णवेवि । णिय - अणुवहो विक्कमु मणुहरेवि । दुव्वार-वेरि-वाहिँ अजेउ । यि थुइ गुरु आहण हरिस हेउ । घत्ता - णिउ सहुँ सवलेण सुवजुवलेण परिरक्खए हरिसंतु । महि पालेवि धण धारहिँ वरिसंतु ।। ६७ ।। कलाले Jain Education International २९ इत्थंतरे दउवारिय-वरेण आवेष्पिणु राज करेवि भेत्ति गयणाउ कोवि आइवि दुबारे तेल तुह दंसण- समीहु जंप सहि माकरहि खेउ पेसिउ विंर्भिय-गय-सहयणेहिँ पणवेष्पिणु सोवि णिविट्ठ तेत्थु वीसमिवियाणि नरेसरेण कोतुहुँकंतु कंतिल्ल भाउ कंचणमय-वित्त-लया - करेण । विणंतु णवंतु सिरेण झत्ति । ठिउ देव देव चित्तावहारि । रवइ तं सुणि रिउ हरिण-सीहु पहु आणइ तेण वि सोसवेउ । अवलोइज्जत थिर-मणेहिँ । धरणीसरेण सइँ भणिउ जेत्थु । सो चरु पुच्छिउ वइयरु परेण । कहो ठाणो किं कज्जें समाउ | भाइ भालुष्परि कर ठवंतु । विजयाचलु णामेँ पयड सेलु । संजु भूरियणं सुवेण । - विणा पुच्छिउ सोणवंतु इत्थथि विहिय-गयणयर-मेलु उत्तर- दाहिण - सेणी जुवेण धत्ता - दाहिण सेणीह, अइरमणीहे रहणेउरपुरे रज्जु । विरयइ तवणाहु णहयरणाहु जलणजडी अणिवज्जु ।। ६८ ।। २८. १. V. देवि । २. Jढ | ३. D. वाणिहि । ० २९. १. J. V. सत्ति । २. D. भय । For Private & Personal Use Only [ ३. २८. १ www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy