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लीलन णिज्जिय सुर-करि करे हिं पसरांति उद्ध-भुव-दंड-जाम निय भुव - जुव वीरिउ पायडेवि सुनंतर यि जसु गीयमाणु पइसिवि परमाणं देण गेह पण विणयालंकि तिविद्रु भालयलि णिवेसिवि कर सिरेण पढमउ परिरंभिवि लोयणेहिँ पुणु गा करे विणु भुजुएण आलिंगिय विणिव णिय-तणूव हुआ पुणुवि णिविवेवि पुच्छिउ णिवेण बलु वाहरेवि सविणणंतु महंत-तेउ विउ परिसंठिउ वासुएउ
asमाणचरिउ
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उचाइ कोड़ि -सिला करेहिं । कि साहुया 'देवे हि ताम | उ यि पुरवरे वाहुडेवि । अणुराय-गयहिँ ससहर- समाणु । राहो चूला -पय-मेह | सामंत- मंति-लोएहिं दिट्ठ । मउडग्ग- लग्ग मणि भाँसिरेण । संदरिसिय हरिसंव-कणेहिँ । रण परियाणि सुरण । सुर-सीमंतिणि-मणहरण- रूव । पहु- पीढ पासि सहरिस णवेवि । णिय - अणुवहो विक्कमु मणुहरेवि । दुव्वार-वेरि-वाहिँ अजेउ । यि थुइ गुरु आहण हरिस हेउ ।
घत्ता - णिउ सहुँ सवलेण सुवजुवलेण परिरक्खए हरिसंतु । महि पालेवि धण धारहिँ वरिसंतु ।। ६७ ।।
कलाले
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२९
इत्थंतरे दउवारिय-वरेण आवेष्पिणु राज करेवि भेत्ति गयणाउ कोवि आइवि दुबारे तेल तुह दंसण- समीहु जंप सहि माकरहि खेउ पेसिउ विंर्भिय-गय-सहयणेहिँ पणवेष्पिणु सोवि णिविट्ठ तेत्थु वीसमिवियाणि नरेसरेण कोतुहुँकंतु कंतिल्ल भाउ
कंचणमय-वित्त-लया - करेण । विणंतु णवंतु सिरेण झत्ति । ठिउ देव देव चित्तावहारि । रवइ तं सुणि रिउ हरिण-सीहु पहु आणइ तेण वि सोसवेउ । अवलोइज्जत थिर-मणेहिँ । धरणीसरेण सइँ भणिउ जेत्थु । सो चरु पुच्छिउ वइयरु परेण । कहो ठाणो किं कज्जें समाउ | भाइ भालुष्परि कर ठवंतु । विजयाचलु णामेँ पयड सेलु । संजु भूरियणं सुवेण ।
- विणा पुच्छिउ सोणवंतु इत्थथि विहिय-गयणयर-मेलु उत्तर- दाहिण - सेणी जुवेण
धत्ता - दाहिण सेणीह, अइरमणीहे रहणेउरपुरे रज्जु । विरयइ तवणाहु णहयरणाहु जलणजडी अणिवज्जु ।। ६८ ।।
२८. १. V. देवि । २. Jढ | ३. D. वाणिहि ।
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२९. १. J. V. सत्ति । २. D. भय ।
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[ ३. २८. १
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