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वड्डमाणचरिउ
[३. २२. ६- नामेण जयावइ पढम भज्ज
तहु अवर मयावइ हुअ सलज्ज । आयह दोहि मि सोहेइ केम तिणयणु गंगा-गौरीहिं जेम । जिहँ कालु गमइँ आयह समेउ नं सइँ अवयरियउ कामएउ । अवयरिवि सुरवासहो सरूउ हुउ पढमु विजउ निवइह तणूउ । सो जाउ जयावइ-हरिस-हेउ
जो चिरु मगहाहिउ गुण-णिकेउ । घत्ता-जिह नियमु जमेण साहु-समेण उववणु कुसुम-चएण ।
पाउसु कंदेण नहु चंदेण तिह सोहि उ कुलु तेण ।। ६१ ॥
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गएहिं दिणेहिं कएहिँ पियाहि थणंधउ जाउ मयावइ आहि । पुरा जइणी-सुउ जो पुण सग्ग सुहासिव हूउ सुहोह-समग्गि । छांणदुव णिम्मल-कति-समिल्ल णिमाइ जणाण मण सुपियल्लु । सिरीहि णिवासु नवो नलिणीहि मणोहरुणं कमलो रमणीहिँ। पुरे पडियामल पंच पयार
नहाउ पयत्थ निरंतर धार । गहीररेवाल पवज्जिय तूर
असेस खलासह नासय जूर । पणच्चिय वारविलासिणि गेहि घरग्ग-धयालि-वियारिय मेहि । सहकरु गायउ गीउ रवन्नु । विइन्नउ वंदियणाहँ सुवण्णु । करेवि जिणेसर-पायहँ पूज सुभत्ति॑िश अटुपयार मणोज्ज । किओ दहमें दियह तहु नामु तिविट्ठ अणिट्ठहरो कय-कामु । तओ कढिणत्तु सरीरवलेण पवुढि गओ गुणसारि कमेण । रमंतउ भूहर रक्खइ केम
अणग्घ-मणी जलरासिहि जेम । धत्ता-बालेणवि तेण विलयवरेण सयलवि कल निरवज्ज ।
तिरैयण सुद्धिष्ट थिर वुद्धिश परियाणिय निव-विज ।। ६२ ।।
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नव-जोवण-लच्छिए अणुकमेण सो सुंदरेयरु सोहग्ग-रासि सुव-जुवल-समिनिउ लद्धमाणु णरवइ सह भवणि भएहि चत्तु
अहिणउ सुतु अवलोइउ जणेण । संजायउ रिउगल-काय-पासि । पुहईयरेहि सेविजमाणु । रयणाह रणालंकरिय-गत्तु ।
२३. १. D. याइ । २. J. वला। ३. D. ह । ४. D. °त्तए। ५. D. अणिटुं । ६. D. रासि ।
७. D. J. तिरियण । २४. १. D. सुंदरं । २. D. भा।
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