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________________ ३. २४. ४] हिन्दी अनुवाद __उस राजाकी प्रथम भार्याका नाम जयावती था, जो लज्जाशील थी। उसकी दूसरी भार्याका नाम मृगावती था। उन दोनों भार्याओंसे वह कैसे शोभता था, जैसे मानो त्रिनेत्र महादेव गंगा-गौरीसे सुशोभित होते थे। जिस राजाका काल अपनी दोनों रानियोंके साथ व्यतीत होता था, वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो कामदेव ही अवतरित हो आया हो। विशाखनन्दिका वह जीव-सुन्दर देव, स्वर्गसे अवतरित होकर उस राजाका विजय नामक प्रथम पुत्र हुआ। जो गुण-निकेत पहले मगधाधिपति था, वही अब जयावतीके हर्षका कारण बना। __घत्ता-जिस प्रकार संयमसे नियम, समतासे साधुता, कुसुम-समूहसे उपवन, कन्दसे वर्षाऋतु एवं चन्द्रमासे आकाश सुशोभित होता है उसी प्रकार राजा प्रजापतिका कुल भी उस १५ विजय नामक पुत्रसे सुशोभित था ॥६१।। विश्वनन्दिका जीव-देव, राजा प्रजापतिको द्वितीय रानी मृगावतीकी कोखसे त्रिपृष्ठ नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न होता है । पूर्वमें जो रानी जयनीका पुत्र (विश्वनन्दि ) स्वर्गमें देव हुआ था, वही देव कतिपय दिनोंके बाद रानी मृगावतीको कोखसे समस्त सुखोंके सारभूत एवं अमृत वर्षाके समान, पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ। वह पूर्णचन्द्रके समान निर्मल तथा अद्वितीय कान्तिवाला, मायारहित, जनमन प्रिय एवं श्रीकी निवासभमि, रमणीक नवनलिनी द्वारा उत्पन्न मनोहर कमलके समान था। ( उसके जन्मके समय ) नगर में आकाशसे पाँच प्रकारके निर्मल पदार्थ लगातार बरसते रहे। ५ जोर-जोरसे तूर आदि बाजे बज उठे। वे वाद्य-ध्वनियाँ समस्त दुष्ट जनोंके लिए असह्य हो उठीं। घरों-घरोंमें वार-विलासिनियोंके नृत्य होने लगे। घरोंके अग्रभागोंपर लगी हुई ध्वजा-पंक्तियोंसे मेघ विदीर्ण होने लगे। शुभकारी एवं सुन्दर गीत गाये जाने लगे। वन्दीजनोंके लिए स्वर्णका वितरण किया जाने लगा। जिनेश्वरके चरणोंकी भक्तिपूर्वक अष्टविध मनोज्ञ पूजा करके दसवें दिन ( उस पुत्रका ) अनिष्टको दूर करनेवाला तथा मनोरथको पूर्ण करनेवाला त्रिपृष्ठ यह नामकरण १० किया गया। उस त्रिपृष्ठका गुणभार शरीर-क्रमसे एवं बलसे वृद्धिंगत होकर कठिनताको प्राप्त होने लगा। वह भूधर-राजाओंके साथ प्रमोद क्रीड़ाएँ करता हुआ किस प्रकार सुरक्षित था ? ( ठीक उसी प्रकार ) जिस प्रकार कि जलराशि-समुद्र द्वारा अनर्घ्य मणि सुरक्षित रहता है। पत्ता-उस विनयवान् बालकने भी त्रिकरणशुद्धिपूर्वक स्थिर बुद्धिसे समस्त निरवद्य ( निर्दोष ) कलाएँ तथा नृप-विद्याएँ सीख लीं ॥६२।। २४ एक नागरिक द्वारा राजा प्रजापतिके सम्मुख नगर में उत्पात ___मचानेवाले पंचानन-सिंहकी सूचना प्रजाजनोंने अनुक्रम पूर्वक त्रिपृष्ठसे नवयौवनरूपी लक्ष्मीको अभिनवस्वरूप (शोभासम्पन्न ) देखा ( अर्थात् त्रिपृष्ठको पाकर यौवन स्वयं ही शोभा एवं श्रेष्ठताको प्राप्त हो गया ) वह सुन्दरतर एवं सौभाग्यकी राशिस्वरूप तथा शत्रुजनोंके गले में की गयी फाँसीके समान था। वह भुजबलसे युक्त विख्यात तथा पृथिवीधरों द्वारा सेवित था । एक दिन जब राजाके साथ वह निर्भीक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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