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३. २२.५]
हिन्दी अनुवाद शाश्वत चैत्यगृहोंके जिन बिम्बोंको प्रणाम कर विद्याधर परिवार सहित अनेक उत्सवोंके साथ जब अपने घर लौटा. तब देवोंने उसे ज्वलन्त चक्र. अमोघशक्ति, झालरवाला छत्र, चन्द्रहास खडग तथा सुप्रचण्ड दण्ड प्रदान किये और भी कौन-कौनसे दण्ड ( धनुष ) उसे प्रदान नहीं किये गये?
घत्ता-सोलह सहस्र श्रेष्ठ मण्डलधारी राजा उसकी सेवा करते थे, उससे तिगुनी स्त्रियाँ उसके अन्तःपुरमें थीं। वह बलवान् प्रतिनारायण पृथिवीको भोगता हुआ जयवन्त होकर राज्य १० कर रहा था ।।५९।।
सुरदेश स्थित पोदनपुर नामक नगरका वर्णन इसके अनन्तर, अति विस्तीर्ण क्षेत्रवाले, तरु, गिरि एवं सरोवरोंसे व्याप्त इस भरतक्षेत्र में 'सुर' नामका एक देश है, जो गोधनसे विभूषित एवं कानन-प्रदेशोंसे युक्त है। जहाँ सरस उन्नत तथा अनेक प्रकारके फलोंवाले सघन-वृक्ष सज्जनोंके समान सुशोभित हैं। जहाँ अटवीके सरोवरोंके तीर तथा गहरे जल नवीन कमलिनियोंके पत्तेसे ढंके हुए हैं। इसी कारण तृषातुर हरिणियाँ भ्रमसे उसे हरिन्मणियों-पन्नाका बना हुआ भूमिस्थल समझकर उस जलको नहीं पी पाती।
जहाँकी सरिताएँ एवं महिलाएँ समान रूपसे सुशोभित हैं। सरिताएँ लोगोंके मनको हरण करनेवाली लहरियों, एवं महिलाओंके नेत्रोंके समान चंचल मछलियोंसे युक्त हैं। महिलाएँ भी लोगोंके मनको हरण करनेवाली लोललहरियोंके समान वक्र तथा भ्रू लताओं एवं चंचल नेत्रोंसे युक्त हैं। लोग सरिताओंके नितम्बों-किनारोंका सेवन करते हैं, पति भी मानरहित होकर महिलाओंके नितम्बरूप भूमि भागका सेवन करते हैं।
उसी सुर नामक देशमें विशाल पोदनपुर नामका नगर है, जो इन्द्रपुरीके समान सुन्दर है, तथा जो देवोंके नेत्रोंको भी मोहित करनेवाला है। जहाँके मन्दिरोंके अग्रभाग विशिष्ट उत्तम मणियोंसे विभूषित हैं तथा मणि निर्मित दर्पणके समान सुशोभित हैं। मणिबिम्बोंमें जब तारागण प्रतिबिम्बित होते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है, मानो आकाशतल नव मोतियोंसे पूर दिया गया हो । जहाँ घरोंमें प्रियतमके पलंगोंके ऊपर नीलरुचिके पटलवाले छत्ते लगे हुए हैं, जहाँ रात्रिके १५ समय रतिगृहोंमें प्रियाएँ राहुसे पिहित चन्द्रमाके समान दिखाई देती हैं।
घत्ता-निर्मल आँगनकी मणिमय भूमिपर रविके आताम्र प्रतिबिम्बको दर्पण समझकर वेगपूर्वक लेते हुए देखकर सखियाँ हँसने लगती हैं ॥६०।।
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विशाखनन्दिका जीव ( वह देव ) राजा प्रजापतिके यहाँ विजय
__ नामक पुत्रके रूपमें जन्मा उस पोदनपुरमें अपने तेज खड्गसे शत्रुजनोंके कपालोंका निरसन करनेवाला प्रजापति नामका भूमिपाल-राजा राज्य करता था। गजरूपी घटाओंको चूर करने में प्रचण्ड उस राजाके दायें बाहुदण्डमें जयश्री विराजमान रहती थी। उसका वक्षस्थल श्रीसे विभूषित था। मृगनयनियोंके द्वारा उसका सौन्दर्य निहारा जाता था। जिसका दान कल्पवृक्षोंसे भी विशेष होता था। वन्दीजनोंको जो निरभिमानपूर्वक अत्यधिक दान देता था वे ( वन्दीजन) एक क्षणको भी उस नरनाथका साथ न छोड़ते थे। ऐसे उस प्रजापतिकी उपमा किससे दी जाये ?
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