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________________ ६६ वड्डमाणचरिउ [३. २०.६विज्जाहर-परिवार-सजुत्तउ बहु उच्छवें णिय-घरु संपत्तउ । देव-दिन्नु जसु चक्कु जलंतउ सत्ति अमोह छत्तु झलकंतउ । असि ससिहासु दंडु सुपयंडु कवणु-कवणु तसु देइ न दंडु। घत्ता-सोल-सहस-सेवय नर वर मंडल धर तिउणतेउर-जुत्तउ । सो पडिहरि बलवंतउ महि भुंजंतउ करइ रज्जु जयवंतउ ॥ ५९ ॥ 10 २१ इत्थंतरि अइ-वित्थिन्न-खेत्ति तरु-गिरि-सरु-पूरिय-भरह खेत्ति । णिवसइ सुर णामेण देसु गोहण-भूसिय-काणण-पएसु। जहिं सरसुन्नय-वहु-फल-घणेहिं सोहहिं तरुवर नं सजणेहि। जहिँ अडवि सरोवर-तीरि णीरु नव-नलिणी-दल-झंपिउ गहीरु । न पियासियाइँ हरिणी 'पिएइ गरुलोवल-थल-मूढी ण एइ । जहिँ जण-मणहर-लहरी भुवाउ सुपओहर-तिमि-चल-लोयणाउ । नर-रमिय-नियंबावणि अमाण सोहहिं सरि पणइंगण-समाण । तत्थत्थि विउलुं पुरु पोयणक्खु सुरपुरु व सुमोहिय-सुरयणक्खु । जहिं मंदिरग्ग-भूसिय मणि? सोहहि मणि-दप्पण समवसिट्ठ। तारायणेहिं मणि-बिंबिएहिँ नं पूरिय-तल नव-मोत्तिएहिँ। घर लग्ग-नील-रुवि पडल-छन्नु पिययमु पल्लंकोवरि णिसन्नु । जहि निसि दीसइ रइहरि ठियाहिँ सब्भाणु-पिहिउ चंदुव तियाहि । घत्ता-........सुद्धंगण लिंति मणि महिरवि पडिबिंबु । दप्पण भावेण दिक्खि जवेण हसइ सहीयायंधं ॥ ६० ॥ २२ तहिं असिवर निरसिय-रिउ-कवालु। जसु जय-सिरि दाहिण-बाहु-दंडि वच्छत्थलु भूसिउ लच्छियाई सुरतरुवि विसेसिउ जेण दाणु न मुवहि खणिक्कु नरनाह-पासु नामेण पयावइ भुमिपालु । निवसइ गय-घड़-चूरण-पयंडि। अवलोइउरूउ मयच्छियाई। दितिं वंदियणहँ अइ अमाणु। महियलि उवमिज्जइ काइँ तासु । २१. १.J. V. सरहोवर । २. J. पएइ । ३. D. विउल । ४. J. V. सहीयावंतु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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