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________________ वडमाणचरिउ [३. १६.१ 5 तहो अभयदाणु देविणु सचित्ति चिंतिवि जिणवर सुमरणे पवित्ति । हउँ अप्पसण्णु मुहुँ एत्थु जेण अवलोइज्जंतउ पुर यणेण । किह ठाएस मि इच्छिय सिवासु अग्गइ विसाहभूइह णिवासु । इय कलिवि चित्त-संगहिय-लज्जु जरतणु व दूरि परिहरिवि रज्जु । णिग्गउ णिय-गेहहो तव-णिमित्तु लोया पवाय-भय-डरिय-चित्तु । णरवइ विरज्जु निय-सुयहो देवि तहो पच्छइ लग्गइ मणु जिणेवि । सिरि सिहरि चडाविवि पाणिवेवि 'संभूय'-मुणीसर-पय णवेवि । दोहिमि जणेहिँ संगहिय दिक्ख सहुँ राय-सहासें मुणिय सिक्ख । एत्थंतरि मुणिवि मणोरमेहि परिचत्तु दइय-विक्कम-कमेहिं । लक्खण-तणूउ उद्धाइएहिँ जिणि लइय राय सिरि दाइएहिं । भत्ता-दूरत्तणु तासु करइ हयासु दरिसिज्जंतु जणेहिं। अंगुलियई राउ एउ वराउ चिरु वियसिय-वणेहि ॥ ५५ ॥ 10 एत्यंतरे उग्ग-तवेण तत्तु मासोपवास-विहि-खीण-गत्तु । उत्तुंग-हम्म-महुरहि पइट। भिक्खा-णिमित्तु लोएहि दिछ । सो विस्सणंदि-मुणि पहें पयंतु णंदिणि-विसाण-हउ तणु धुणंतु । पिक्खेवि उवहासु कुणंतएण घेसा-सउह-यले परिट्ठिएण। अहिमाण-कुलकम-णय-चुएण जंपिउ विसाहभूइहे सुएण। कहिं गउ तं बलु तुह-तणउ जेण जिणि सिण्णु सदुग्गु महाजवेण । उम्मूलिउ सिलमउ थंमु जेम गयणंगणे लग्गु कवित्थु तेम । तहो वयणु सुणेविणु तं णिएवि तत्थवि जाणवि खमै चएवि । जइ अत्थि किंपि तव-हलु विसिट्ठ तो समरंगणे विरइवि अणिट्ट । एहु वइरिउ मारेसमि णिरुत्तु इउ करि णियाणु णिय-मणे णिरुत्तु । घत्ता-मगहे सरजुत्तु देह-विउत्तु सोलहि जलहि समाउ । महसुक्कि सतेउ जायउ देउ सो सुंदरयर-काउ ॥५६॥ 10 १७. १. D. J. V. पयंडु । २. D.J. V. खमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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