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बड्डमाणचरिउ
[२.२०.१
२० तहिँ सुर-णारिहिं
सुर-मण-हारिहिं। दीहर-णय णिहिँ
पहिसिय'-वयणिहि। विणिहउ तिक्खहिँ
णयण-कडक्खहिं। सभसल-विमलहिँ
लीला-कमलहिं। णिम्मल-सिज्ज हिं
मयण-विसजहि देवहिँ सहियउ
अणरइ-रहियउ। रमइ सुरालइ
रयण-गणालइ। जहिं मणि रुच्चइ
तहे खणे वच्चई। सुरतरु-वर-वण
रमिय-भमर-गण । फल-दल-फुल्लई
भूरि-रसोल्लई। लेविण परिसइ
देविणु दरिसइ । मह-माणस-सर
मरु-पसरिय-सर। जाइ विसाल
वर-जल-कीलई। पिययम सिंचइ
निय-तणु वंचइ। गिरिवइ-संठिउ
अइ-उक्कंठिउ। मणहक गायई
वजउ वायई। णिहुवउ विहसइ
सुललिउ भासइ। घत्ता--तहिँ तहो अच्छंतहो सुहु इच्छंतहो मउडालंकिय-भालहो। तरणिव दिप्पंतहो सिरि विलसंतहो सत्त जलहि-मिय का हो ॥ ३७॥
२१ कप्परुक्ख-कंपण विसालण
मल-मइलिण-मंदारह-मालई। लोयण भंतिम सग्ग-विणिग्गमु संसूयउ दुक्खोहहँ संगमु । विलवइ णिजरु करुणु रुवंतउ हियउ हणंतु स-सिरु विहुणंतउ । पणइणि-मुहु स-विसाउ णियंतउ मुच्छा-विहलंघतु घोलंतउ । समिय-पुराइय-पुण्ण-पईवहो चिंता-सिहि-संताविय-भावहो। आसा चक्कु मज्झ विगयासहो तिमिरावरिउ अज्ज हयहासहो। हा तियसालय मणि-यर-हय-तम सुंदर सुरसुंदरिहिं मणोरम । किं ण धरहि महु पाण-मुवंतउ दुक्खिय-मणु निलयहो निब्भंतउ । अज्जु सरणु भणु कहो हउँ पइसमि का गइ किं करणिउ कहि वइस मि । केण उवाएँ जीविउ धारमि । वंचिवि मिच्चुह तं विणिवारमि । सह संजायवि गुण-गण-गेहहो गउ लावण्णु वण्णु महु देहहो । घत्ता-अहवा पुणु विहडइ देहु वि ण घडइ पुण्णक्खउ पावेविणु ।
पाणई जंतइ धरु पिय आरासरु पणएणालिंगेविषु ।। ३८ ॥ २०. १. D. ह । २. D.°णि । ३. . J. V. इं । ४. D. J. V. कायहो । २१. १. D.J. V. मिच्चु हवंति णिवारमि। .
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