________________
३८
वड्डमाणचरिउ
[२. १५.१३घत्ता-कविलाइय सीसहिं पणविय सीसहिं परिवायय तव धारें।
संख-मउ पयासिउ जडयण-वासिउ तेण कुणय-वित्थारें ॥३२॥
१६
पंचवीस तच्चई उवएसिवि
कुमय-मग्गे जडयणु विणिएसिवि । परिवायय-तउ चिरु विरएविणु सो मिच्छत्त पाण-मुए विणु। पंचम-कप्पि सुहासिव हूवउ
कहो उव मिज्जइ अणुवम-रूवउ । दह-रयणायर-परिमिय-जीविउ सहजाहरण-किरण-पेरिदीविउ । जीवियंति सोणिहउ कयंतें तिविह-भुवण भवणंगे कयंतें। कोसलपुरि कविलहो भूदेवहीं परिणिवसंतहो चवल-सहावहो। जण्णसेण-कंता-अणुरत्तहो
जण्णोइय-परिभूसिय-गत्तहो। तहो तणुरुहु सत्थत्थ-वियक्खणु हुउ बह्मणु सव्वंग-सलक्खणु। जडिलु भणिउ जलणुव दिप्पंतउ मिच्छादिट्ठिह सहुँ जपंतउ । भयव-दिक्ख गेव्हेविणु कालें परिपालेविणु मुउ असरालें। घत्ता-हुउ सुरु सोहम्मई मणिमय-हम्मई वे-सायर-जीविय-धरु ।
अमियज्जुइ समण्णिउ सुर-यण-मण्णिउ सुंदरु उण्णय-कंधरु ॥३३॥
10
सूणायार गामि' मण-मोहणि ___ कुसुमिय-फलिय विविह-वण-सोहणे। आसि विप्पु पुहुविश विक्खायउ णिय-कुल-भूसणु भारदायउ । पुप्फमित्त तहो कंत मणोहर
कंचण-कलस-सरिच्छ-पओहर । विमलोहय पक्खहिं पविराइय हंसिणीव हरिसेणप्पाइय । आवेप्पिणु तियसावासहो सुरु ताहँ पुत्तु जायउ भा-भासुरु । पूस मित्तु णामें मण-मोहणु
माणिणि-यण-मण-वित्ति-णिरोहणु । परिवाययहँ निलउ पावेप्पिणु सग्ग-सुक्खु णिय-मणि भावेप्पिणु । बालुविदिक्खिउ बालायरणे गमइ कालु भव-भय-दुह-यरणें। तउ चिरु कालु करेइ मरेविणु पंचवीस तच्चई भावेविणु । सुरु ईसाण-सम्गि संजायउ
कुसुम-माल-समलंकिय-कायउ । वे-सायर-संखाउसु सुहयणु
अच्छर-यण-कय-णट्ट-णिहिय-मणु । घत्ता-कण-निवडिय-खयरिहे सोइय णयरिहे अग्गिभूइ दिउ हुन्तउँ ।
गोत्तम-पिय-जुत्तउ पत्त-पहुत्तउ छक्कम्मई माणंतउ ॥३४।।
10
१६. १.J. पर । २. पर । ३. D. सेणिहउ V. णियहउ । १७. १. D. पुष्पमित्त J. V. पुप्पमित्त । २. D. हों।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org