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________________ 5 10 5 10 ३६ वडूमाणचरिउ १४ घ तुरु तुरं रणिओ । पुणु सो परिपालि विद्धिणिओ । भव-भूव-महा-दुह - वित्थरणं । सघरं सपुरं चउरंग-बलं । वस्वोह - विहूसण- विष्फुरिओ । सम भावहिं भाविय हेम- तिणु । रणाह - णिकाहिँ सोहियउ । सुमरेविणु सिद्ध दिक्खियउ । उ संजम धारि गुणी णिउणो । सहसत्ति मरीइ कुभाव - गओ । भय-भोय- विरत्तुण भीक जणे । जिण - णाह - समीरिउ तेण तओ । घत्ता - अक्कहि वासरि रवि - बोहिय-सरे पुणु मरीइ णामेँ पहु । कइलास-महीहरे तियस - मणोहरि पयडिय - सिवपुर-वर-पहु ||३१|| वरे वारे ती ओ जणिओ तो णामु मरी कओ माण-सुरिंद- पिया-मरणं स पेक्खवि जाणि जयं चवलं हुँ मिल्लिविमतिणं तुरिओ वइराय- गओ पुरुएव- जिणो fre देवरसीहिं पबोहिवउ खयरोरय - देवहिँ लक्खियउ सहुँ ते जिणेण मरीइ पुणु दुहयारि - परीसह - पीड- हओ जिलिंग धरेइ महंतु मणे पमुवि पुराकय- पाव - खओ तिजयाहिव - सामिउ आइ-जिणु अवलोइड जावि जावतओ परमेसर कित्तिय तित्थयरा होहिं णाहि गरिंद-सुओ -संजुव - वीस- जिणा पवरा पुणु पुच्छिउ चक्करेण जिणो तो जीव मज्झिमणोहरणे पुणु जंपइ देउ भवं खविही चवीसमुमिच्छतमेण चुओ कविलाइ सीस गुरुहविही जिण त्तु सुणेवि मरीइ तओ जिण वुत्तु ण चल्लइ मण्णि मणे Jain Education International [ २. १४. १ १५ सम भावण भाविय हेमतिणु । भरसे' पुच्छिउ धम्मधओ । तह चक्कहराणय-बोमयरा | परि जंपइ तासु पलंब-भुओ । वसु-तिणि मुणिज्जहि चक्कहरा । पण विणु मुक्क- दुहोह - रिणु । इह अच्छइ को विण वासरणे । तुमरी जो हविही । मरिही भविही भवे धम्मचुओ । पडेसइ लोय पुरो अविही । लहु निग्ग तत्थहो हरिसरओ । हरिसेण पणच्चिवि तित्थुखणे । १४. १ - ३. D. वासरे ताए । १५. १. D. J.°सर । २. J. तिय । ३. V. प्रति में इस प्रकार पाठ है - तुहु पत्तु हवे मरीइ जिणो हविही D. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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