SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 5 10 ३४ जसु गब्भावयारें संजायउ जसु जम्मर्ण विणु, आकंपिउ "जो उप्पण्ण- मेत्तु देवेदिहिं अवरुप संविहिय-विमद्दिहिं for her मत्थइँन्हाविउ मइ सुइ अव हि तिणाण-समिल्लउ जो सुरतरुव रेहिं उच्छण्णहिँ अज्जव लोयहो करुणावरियउ तो कुसुमालंकरिय- सिरोरुहु छक्खंडावण मंडल - सामिउ asमाणचरिउ घत्ता - तहिं णरवइ होंतर महि भुंजंतर रिसहणाहु परमेसरु । तित्थयरु पहिल्लउ णाण-समिल्लउ तिजयंभोय दिणेसरु ॥ २८ ॥ चउदह-रयण-समणिय णव - णिहि जसु दिग्विजइ महंत - मयं गहूँ । भरुअ सहति व धण-कण - दाइणि जसु भइ कंपिय सोहण- विग्गहु जं आयणिवि नरहिउ वरतणु णिम्मलयरु जसु पयडतहो जसु जो सुरसरि-सिंधुहि अहिसिंचि वेड्ढहो गुह-मुहु उग्घाडिउ जेण फुरंताहरण-विराइड विज्जाहरवइ णमि - विणमीसर घत्ता Jain Education International घत्ता—चक्कालंकियकरु परिपालिय करु पढमु सयलचकहरहँ । चक्कवइ-पहाणउ, सुरै- समाणउ, मणि मंडिय-मउड-धरहँ ।। २९ ।। १२. १. D. जे । २. D. वलय गई । ३. [ २.११.११ १२ देवागमु गयणयलि न माइउ । जय जय सहु सुरेहिं पयंपिउ । आणंदें उलिय-कर- दुर्द हिं । गंभीरारव-दुंदुहि-सद्दिहिं । खीर-णीर-धारहिं मणि- भाविउ । जो सयंभु छक्कम्म छइल्लउ । पुरियरयण - किरणेहिं रवण्णहिँ । अहिणव-कष्पमु अवयरियउ । हुव भरहु णामेण तणूरुहु । इमिलियालि गय- गइ-गामिउ । १३ जसु मंदिरे विलसहिँ पयणिय- दिहि | संदण-भड-संदोह तुरंगहँ । धूलि मिसेण चडइ हे मेइणि । पत्तु तुरंतु थुणंतु व मागहु । सेव करेवि गड देविणु सुह-धगु । मुक्कुहासु पहासु हुवउ वसु । उववण-धणयहिँ कुसुमहिं अंचिउ । मिच्छाहिउ भिडंतु विभाडिउ । मालि सुरु पाहिँ लाइउ । केरकराइय कुल रयणीसर । -तहो गेहिणि धारिणि गुण-गण-धारिणि ताहे गब्भे सबरामरु । सग्गहो अवयरियउ रुइ - विष्फुरियर सुरतिय चालिय चामरु ॥ ३० ॥ सुरवस समाणउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy