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________________ बड्डमाणचरिउ [२.१०.१ 5 एत्थवि जंबूदीव विदेहई पंगणि वरिसिय विविहई मेहई। पुक्खलवइ-विसयम्मि विसाल णारि-दिण्ण-मंगल-रावाल । सीया-जलवाहिणि-उत्तरयले अगणिय-गोहण-मंडिय-महियले । विउल पुंडरिंकिणि पुरि निवसइ जहिँ मुणिगणु भव्वयणहँ हरिसइ । सत्थवाहु तहिँ वसइ वणीसरु धम्म-सामि नामेण महुर-सरु । तहो सत्थेण तेण सहुँ चलियउ मंदगामि तवलच्छी-कलियउ । हियय कमले-विणिहित्त जिणेसरु णामें सायरसेणु मुणीसरु । एक्कहिं दिणि चोरेहिँ विलुटिए । तम्मि सत्थि लवडोवल-कुट्रिए । सूरहिं जुझेवि पाण-विमुक्कई कायर-णरई पलाइवि थक्कई । एत्थंतरे वण-मज्झ मुणिंदें तव-पहाव-उवसमिय-फणदें। दिस-विहाय-मूढेण णिहालिउ सवरु कालि-सवरी-भुव लालिउ । सूवर-हरिण-वियारिय-सूरउ रूव-रहिउँ नामेण पुरूरउ । पुत्वन्जिय-पावेण असुद्धउ सो कूरु वि मुणि-वयणहि बुद्धउ । भत्ति करेविणु सहुँ सम्मत्तें लइय. सावय-वयई पयत्त। कोउवसंतएण चुव-संगें णिण्णासिय-दुव्वार-निरंगें। धत्ता-सहुँ मुणिणा जागैवि करु उच्चाइवि तेण मगि मुणि लाइउ। जिण-गुण-चितंतउ मइ-णिभंतउ गउ उवसम-सिरि राईउ ।। २७॥ 15 सावय-वयई विहाणे पालिवि बहुकाले सो मरवि पुरूरउ वे-रयणायराउ सोहंतउ | इह पविउल-भारह-वरिसंतरे वसई विणीया णयरि णिराउल परिहि रयण-गण-किरण-णिहय-तम चउदिसु णंदण-वणिहि विहूसिय णाणा-मणि-गण-णिम्मिय-मंदिर गजमाण दार ठिय चंदिर णव-तरु-पल्लव-तोरण सुहयर जीवई अप्प-समाणई लालिवि । पढम-सग्गे सुरु जाउ सूरूरउ । अणिमाइय-गुण-गणहिं महंतउ। सरि-सरवर-तरु-णियर-णिरंतरे। णं सुर-रायहो पुरि अइ-पविउल । परिहा पाणिय-वलय मणोरम । खल-दुजण-पिसुणेहिं अदूसिय । सुह-सेलिंधणिलीणिदिदिर । खयरामर-णर-णय घर-पंगण-कण-पीणिय-णहयर । 10 १०. १. J. V. मुं। २. D. J. V. रायउ । ११. १. D. भराह । २. D. वल । ३. D.दरे । ४. D.दरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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