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________________ [२. ८.४ वड्डमाणचरिउ लहु अवरिय णहहो गह-चारण सीह-पवोहणत्थु सुह-कारण । सत्त-वण्ण-तरु-तले सुविसिटुइँ सुद्ध सिलायले बे वि निविट्ठई। साणुकंप कलकंठ महासइ सत्थु पढंते पवर संजय-जइ । मत्त-महा-मयगल-पल-लुद्धउ ताह सद्दु सुणि सीहु पबुद्धउ । कूर-भाउ परिहरिवि पहूवउ । पंजलयर-मणु सोमु सरूवउ । णीसरेवि गुह-मुहहो मयाहिउ अइ-पसमिय-भावेण पसाहिउ । ताहँ समी निविठु नयाणणु थिर-लंगूल्लु दुरय-संदाणगु । घत्ता-तं णिएवि निराउहु जियकुसुमाउहु अमियकित्ति संभासइ। सीलालंकारउ निरहंकारउ दिय-पंतिणहु भासइ ।।२५।। 10 भो सीह जिणिंदहो पणय-सुरिदंहो सासणयं । तिहुयण-भव्वयणहँ वियसिय वयणहँ सासणयं । बहु दुक्खु सहते पइँ अलहंते भव-गहणे । णाणा-तणुलिंतें णडुअ मुअंतें अइगहणे । सीहेणव विलसिउ मय-गल'-तासिउ एत्थु पर। पूरिय गयदंतिहिँ मोत्तियपंतिहि सयलधर । णासाइ विवज्जिउ परिणामज्जिउ दिठिमउ । सइँ कत्तउ भुत्तर विवहो मित्तउ णाणमउ । सहुँ रायहिँ सुंदर माणिय-कंदर परिहरहि । मिच्छत्तु दुरंतउ धम्मु तुरंतउ अणुसरहि । राई बंधइ जिउ ण मुणइ णिय-हिउ कम्म-कलं । गय-राउ ति मुच्चइ अण्णु न संचइ पवर-बलं । उवएसु अर्णिदहो एउ जिणिदहो तुव कहिउ । पयणिय-दुह-सोक्खहो बंध-विमोक्खहो णउ रहिउ । बंधाइय दोसहो णिरसिय तोसहो मूल मुणि । दोसहँ जउ अक्खिउ सुक्खु विवक्खिउ पुणु वि सुणि । तहु विद्धि हम्मइँ हय अवगम्मइँ णित्तुलउ । सम्मत्तु सुणिम्मलु णिहणिय-भवमलु सुहणिलउ । धत्ता-रायाइय-दोसहिं पयणिय-रोसहिं जा पई भमिय भवावलि। सा सीह हियत्तँ णिसुणि पयत्तें मणु थिरु करि जंतउ वलि ॥२६॥ 15 20 २. D. ओ। ९. १. D. बहु । २. J. V. दियत्तें। 1. The saga who is gifted with the power of moving in the sky independently. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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