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________________ वड्डमाणचरिउ [२. ६. ४दूरहो मेल्लिवि मत्त-महागउ उत्तरियउ मुणि-पय-दसण-रउ । भवियण-पुरउ विणउणं दरिसिउ विणु विणएण कवणु पावइ सिउ । छत्ताइय-णिव-चिंधहिं वज्जिउ दुज्जय-मिच्छत्तारि-अणिज्जिउ । तेण वणंतरे पइसंतें मुणि विणिहालिउ गंभीर-महा-भुणि । मूलहो वीढे असोय महीयहो सरणु असेस-जणहो भय-भीयहो। फलिह-सिलायले णं णिय-धम्महो मत्थई पयणिय-सिव-पय-सम्महो। कर जोडिवि ति-पयाहिण देविणु मुणि वंदिउ णिय सिरु णावेविणु । तहो समीव महियले वइसे प्पिणु महिवइणा वहु-विणउ करेविणु । घत्ता-संसिवि दिण्णत्तउ सो णय-जुत्तउ दलिय पंच-वाणावलि । तव-सिरि-रमणीसर परम-मुणीसर भणु महु तणिय-भवावलि ॥२३॥ 10 5 इय जपेविणु मउणु करेविणु जा णरवइ सम्मुहुँ जाएविणु। परिसंठिउ ता चवइ दियंवरु अणुदिणु-विरइय-तियरण-संवरु। एक्कमणेण णिसुणि कुल-दिणमणि थिरु ठाइवि भवियण-चूडामणि । इह दरिसिय मयरोहरक्ख छव भरहवासि हिमवंत-समुभव । अस्थि गंग जल-पीणिय-सावय फेणालिश हसइव अंवरावय। तह उत्तर-तडे अइ-गरुवंगउ अत्थि वराह णामु गिरि तुंगउ । स पिहुलु णहु उल्लंघिवि भावइ सग्ग-णिरिक्खणत्थु थिउ णावइ। तहिं गिरिवरि तुहुँ हुँतउ मयवइ मयगल-दप्प-दलणु भो णरवइ। एयहो भवहो णवम-भव भीसणु भंगुर-भउ हालउ मह-णीसणु । सिसु मियंक सण्णिहु-दाढलउ उण्णामिय-लंगूल-करालउ । धुव-भंगुर-केसरु कूराणणु रत्त-णयणु सावय-मरणाणणु । घत्ता-तहिं तेण महीहरे तरुराईहरि णिवसंतें रण-रमियउँ । करि-दलण-कयंते वलिवि णियंतें भूरिकालु परिगमियउँ ॥२४॥ 10 वण-गयंद अण्णहि दिणि मारिवि सम णिहियंगु गुहाणणे जाविहिं तं दिक्खिवि निण्णासिय-रइवर सो मयवइ केसर वित्थारिवि । णिहालिंगिउ अच्छइ ताविहिं। अमियकिति अमियप्पह मुणिवर । ६. १. D. J. V. फलह । ७. १. D°णा। ८. १.ई। 1. D आपगाः= नदी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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