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२६.३]
हिन्दी अनुवाद वनमें स्थित मुनिराजविषयक वृत्तान्त सुनकर वह राजा नन्दन रोमांचित शरीर होकर ( उनके दर्शनार्थ ) उत्कण्ठित हो गया। अपनी कान्तिसे रजनीश्वर-चन्द्रको जीत लेनेवाला वह धरणीश्वर सिंहासनसे उठकर मुनि-पुंगवको अपने सम्मुख करके सात पैर आगे गया और उन्हें १० नमस्कार किया। उसने पृथिवी-मण्डल पर अपना चूड़ामणि रगड़ा। उस समय वह राजा ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो जिनेन्द्रके समीप स्वयं इन्द्र ही आ गया हो। राजाने मनमें हर्षित होकर उस वनपालके लिए अपने आभरणोंके साथ ही अनेक धन प्रदान किये।
घत्ता-राजा नन्दनने अपने नगरमें भक्ति-विशेषसे ( भरकर ) कर्म-शत्रुके विमर्दक एवं काममदको जीतनेवाले मुनिनाथकी वन्दना हेतु भेरी-रव करा दिया ॥२१॥
राजा नन्दनका सदल-बल मुनिके दर्शनार्थ प्रयाण गम्भीर, धीर तथा सुरों एवं खेचरोंको विमदित कर देनेवाले उस भेरीके शब्दको सुनकर, जिनधर्ममें सागरके समान गम्भीर, शब्द एवं अर्थके ( मर्मको समझने में ) नागर ( अग्रणी ) और भव्यजनोंके लिए सुखकर उन मुनिराजके दर्शनोंके हेतु राजाका आदेश पाते ही लोग तत्काल ही निकल पड़े, निकल-निकलकर दौड़ने लगे। लोगोंके नेत्रोंको रम्य लगनेवाली, उत्पन्न मनोरथ वाली, कृशकटिभागवाली, विलासयुक्त नेत्रोंवाली, मन्द-मन्द हास्य युक्त मुखोंवाली, सुकुमार ५ गात्रोंवाली, जिननाथकी भक्ति करनेवाली, आभूषणोंसे दीप्त तथा हर्षसे प्रमुदित रामाएँ ( रानियाँ ) विमानोंके समान यानोंमें सवार हईं।
कमलदलके समान नेत्रोंवाले अपने अंगरक्षकोंके साथ, हाथोंमें तलवार धारण किये हुए कुशल-सेवकोंके साथ, विजित शत्रु राजाओं एवं असंख्यात ( अन्य ) राजाओंके साथ, गुणोंरूपी लक्ष्मीका अभिनन्दन करनेवाले बन्दीजनों द्वारा सेवित, ( याचकों की ) मनोकामनाओंको पूर्ण १० करता हुआ तथा दान देकर दरिद्रताको चूर-चूर करता हुआ, पृथिवी-मण्डलपर सिंहासनसे युक्त उत्तुंग रथोंके साथ वह पृथिवीनाथ नरनाथ राजा नन्दन भी नरपतिके योग्य तथा अवसरोचित वेशभूषा धारण कर अपनी जिन-भक्तिको प्रकट करता हुआ श्रेष्ठ हाथीपर सवार होकर सहसा ही इस प्रकार निकल पड़ा, जैसे ( बरसाती ) नदी ही निकल पड़ी हो ।
घत्ता-सुखका विस्तार करनेवाली, मुनि-वन्दनाके कारण मनमें अनुरागसे प्रेरित हुए उस १५ राजाको भवनोंके शिखरोंपर स्थित अति-सुप्रशस्त पौरांगनाओंने देखा ॥२२॥
राजा नन्दन मुनिराज प्रोष्ठिलसे अपनी भवावलि पूछता है इसी बीचमें विद्याधरों द्वारा निर्मित नन्दनवनके सदृश मनोहर लतागृहमें पहुँचकर मुनिराजके चरणकमलोंके दर्शनोंके लिए उत्सुक तथा उसके चरणोंकी पावन-रजको स्पर्श करने
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