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________________ २१ १. १७. १६ ] हिन्दी अनुवाद घत्ता-हे नेमिचन्द्र, चन्द्र एवं सूर्य द्वारा वन्दित जिनेन्द्रका नियमपूर्वक ध्यान करो तथा उसीमें अपना मन लगाओ और अपनी शक्तिपूर्वक तथा गुरुतर भक्तिपूर्वक तपश्रीके गृहस्वरूप श्रीधर मुनि द्वारा नन्दित बने रहो ॥१७|| प्रथम सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुण रूपी रत्न-समूहोंसे भरपूर विविध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा विरचित साधु-स्वभावी श्री नेमिचन्द्र के लिए नामांकित श्री वर्धमान तीर्थकर देवके चरितमें नन्दिवर्धन नरेन्द्रका नैराग्य-वर्णन नामका प्रथम परिच्छेद समाप्त हुआ ॥६॥ सन्धि ॥१॥ आश्रयदाताके लिए आशीर्वाद पवित्र, निर्मल एवं शोभा-सम्पन्न चारित्ररूपी आभूषणोंके धारी, धर्म-ध्यान-विधिमें निरन्तर रति करनेवाले, विद्वज्जनोंके लिए प्रिय, अन्तःकरणमें अभीप्सित अखिल-जगत्की वस्तु-समूहको प्राप्त करनेवाले, दुर्जेय, एवं तत्त्वार्थके विचारमें उद्यत मनवाले श्री नेमिचन्द्र चिरकाल तक इस लोकमें आनन्दित रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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