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वड्ढमाणचरिउ
[१. १७. १५धत्ता-जिणु झायउ नियमणु लाइउ णेमिचंदु रवि वंदिउ ।
णिय-सत्तिए गुरुयर-भत्तिए तव-सिरिहर-मुणि णंदिउ ॥१७॥
इय सिरि-वड्ढमाण-तित्थयर-देव-चरिए पवर-गुण-रयण-णियर-भरिए विबुह-सिरि-सुकइसिरिहर विरहए साह सिरि-णेमिचंद णामंकिए णंदिवडढण-णरिंद-वहराय
वण्णणो णाम पढमो परिच्छेओ समत्तो ॥ संधि ॥३॥
नन्दत्वत्र पवित्र - निर्मल - लसच्चारित्र-भूषाधरो धर्मध्यान-विधौ सदा-कृत-रतिविद्वज्जनानां प्रियः । प्राप्तान्तःकरणेप्सिताखिलजगद्वस्तुव्रजो दुर्जयस्तत्त्वार्थ-प्रविचारणोद्यतमनाः श्रीनेमिचन्द्रश्चिरम् ।।
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