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सन्धि
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धत्ता-तव-वणे गए स-जणणे अवणीरुह-घणे तहो विओय-सोयाहउ ।
णरवइ तिह खेज्जइ जिह मणि झिज्जइ विंझ विउत्तु महागउ ।। सयल-भुवणयल-गइ जाणंतुवि करयल-रयणु व मणि माणंतु वि। मइवंतु वि वित्थारिय-सोएँ । अवसें तम्मइ जणण-
विओएँ । तहिँ अवसरि बुहयण-सामंतई मंति-पुरोहिय-सुहि-सामंत । जणण-विओय-वणिउ बुज्झाव हि तं सुयत्थ-वयणिहि विभावहि । को ण महंतहँ मणु अणुरंजइ
पुरउ पतिहिउ सोउ पउंजइ । सामिय सोउ विसाउ मुएप्पिणु अम्हहँ उवरि' दया विरएप्पिणु । पहु परिहरिय सभासहिँ पिय-पय संभालहिँ स-जणेरहो संपय । हवइ सोय-वसु कुपुरिसु कायरु ण उ कयावि सुपुरिसु गुण-सायरु । स-जणण-दिण-किरिया-सयलविकुरु गुरु-भति पणव हि सुदेउ-गुरु । पई सोयंबुरासि-ठिए के वि वर होंति सचेयण सुह-माणस गर । घत्ता-इय पहु आसासवि सविणउ भासवि सयल वि सह गय गेहहो।
भय-भाव-विवजिय तेण विसज्जिय सिहरालिंगिय-मेहहो ॥१८॥
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मुवि सोउ सजणेरसमुन्भउ सयल मणिच्छिय किरिय समाणिय कइवय-वासरेहिँ विणु खेएँ' विहिय गुणाणुरत्त मेइणि-वहु जं तहो करु पावेविणु चंचल तं अच्चरिउ ण जं पुणु थिरयर अणुदिणु भमइ णिरारिउ सुंदर तेण ण केवलु मच्छर रहिएँ
सहिउ विसाएँ पयणिय-दुब्भउ । णंदणेण जिह तेण वियाणिय । णियबुद्धिए वइरियण-अजेएँ । भय पणयारि तइँवि ललए लहु । णरणाहहो लच्छी हुव णिच्चल । कित्ति महीयले निज्जिय ससिहर । तं जिवित्त पूरिय-गिरि-कंदर। कंति-कुलकम-विक्कम-सहिएँ।
१. १. .J. V.°रे । २. . तें। २. १. D. V. वें। २. D. V.वें । ३. D.°र । ४. J. V.°रु ।
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