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________________ बड्डमाणचरिउ [१.१०.१ १० हउ मेरउ इय जिउ भणइ जाम जर-जम्मण-मरणई लहइ ताम । इय भाव-विमुक्कउ अप्प-भाउ पाविवि जिउ गच्छइ मोक्ख-ठाउ । तहो मुणि तणु वयणु सुणेवि तेहि णिरसिय मिच्छत्त-तमोहएहिं । जाणेवि तच्चु पविमलु मणेण वियसिउ कमलायर जिह खणेण । मुणि दिण्ण. वयाहरणेहिं रामु मिच्छत्त-भाव विरइय विरामु । मुणि-पयई नवेप्पिणु णिवइ-पुत्तु नियगेहहो गउ सम्मत्त-जुत्तु । सुह-दिणि परवल-अवराइएण सामंत-मंति-पविराइएण। विरएवि अहिसेउ नराहिवेण गंभीर-तूर-भेरी-रवेण । जुयरायहो पउ पविइण्णु तासु संतासिय-पर-चक्कहो सुवासु । तिइल्लु वि जुयराय-पउ पावि अप्पाणउ पुण्णाचेरिउ दावि । अइ-तेयवंतु हुउ गुण-णिहाणु जह सरय-समागमु लहवि भाणु । पत्ता-अइ भत्तहे सेवा-सत्तहे मूलिय रायकुमारहूँ ।। चिंतामणि दुविजिय दिणमणि सो हुउ माणिणि मारहँ ॥१०॥ ११ जइविहु णव-जोव्वण-लच्छिवंतु सो सुंदरु तइवि मए-विवंतु । भउ जइवि णत्थि तहो मणि कयावि ता देइ तइवि वइरिहुँ सयावि । परदारहिँ वय चित्तु वि असेसु जसधवलिय-धरणीयल-पएसु । पुज्जंतु जिणेसर-पाय-दंदु रइ-विसइ-भाउ विरयंतु मंदु । चरियई निसुणंतु जिणेसराहँ पणवंतु पयाई मुणीसराह । चूड़ामणि-भूसिय-विउल-भालु जो धम्मासत्तउ गेइ कालु । ता जणणहो उवरोहेण तेण परिणिय सराय-भावंगएण । णामेण पियंकर पियर-भत्त णिय-सिरि-जिय-तियसंगण सुगत्त । सम्मत्त-पुरस्सर-वयई पावि पिययमहो पसाएँ पियई सावि । धम्मामउ अणुदिणु पियह हुति पिययम अणुकूल ण कावि भंति । घत्ता-लज्जह सह विणयहाँ मह पिम्म-णईसहो ससि-कला। पिउ रंजइ सा सुहु भुंजइ परियाणइ परियण कला ॥११॥ 10 १०.१. D. हं । २. D पुण्णवेरिउ V. पुण्णावरिउ । ११. १. D. ह । २. V.हि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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