SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वड्डमाणचरिउ [१.४.४दस सय किरणहि कलिउ विसाले णारोहइ-मणि-मंडिय विसाले । जहिँ जल-खाइयहि तरंग-पंति सोहइ पवणाय गयणि जति । णव-णलिणि-समुब्भव-पत्त णील णं जंगम-महिहर माल लील । जहि गयणंगण-गय-गोउराई रयणमय-कवाडहिँ सुंदराई। पेखेवि नहि जंतु सुहासिवग्गु सिरु धण' मउड-मंडिय णहग्गु । जहिं निवसइ वणियण गय-पमाय परदार-विरय परिमुक्क-माय । सहत्थ-वियक्खण दाण-सील जिण-धम्मासत्त विसुद्ध-सील । जहिं मंदिर-भित्ति-विलंवमाण णील-मणि करोहइ धावमाण । माऊर इंति गिलण-कएण कसणोरयालि भक्खण-रएण । जहिँ फलिह-बद्ध-मडियले मुहेसु णारीयणाहँ पडिबिंविएसु । अलि पडइ कमल-लालसवेउ अहवा महु वह ण हवइ विवेउ । जहिँ फलिह-भित्ति-पडिबिवियाई णिय रूवई णयणहिँ भावियाई । स-सवत्ति-संक गय-रय-खमाह जुझंति तियउ निय-पिययमाह । 10 15 घत्ता-तहिँ णरवइ णावइ सुरवइ करइ रज्ज निच्चितउ । सहु रमणिहि सुर-मण-दमणिहि सुर-सोक्खइ माणंतउ ॥४॥ णामेण णंदिवद्धणु सुतेउ णिय-मणि-णिज्झाइय-अरुह-देउ महिवलइ पयासिय-वर-विवेउ उवयदि पवाय-दिवायरासु णव-कुसुमुग्गमु विणयहमासु छण-इंदु समग्ग-कलायरासु जं पाइवि मणि विज्जा-मणोज्ज णिग्घणे गय दिणे तारा समाणे जस भसिय समहीहर रसेण जं किउ रिउ-वहु मुहु कसण-भाउ मणि चिंतिय करुणय-कैप्परुक्खु परिविद्धिहेमइ-जल-सिंचणेण दुण्णय-पण्ण य-गण-वेणतेउ । णं वीयउ हुउ जगे कामदेउ । अरि-वंस-वंस-वण-जायवेउ । मंभीसणु रणमहि कायरासु । रयणायरु गंभीरिम-गुणासु । पंचाणणु पर-वल-णर-मयासु । मइवंतह मण पविरइय चोज्ज । रेहति ण हंगणि भासमाण । अवि फुल्ल-कुंदज्जइ-सम-जसेण । तं निएवि ण कहो अच्छरिउ जाउ । अणु जणवयहो विलुत्त-दुक्खु । णिज्जेण विरसु को होइ तेण । 10 ५. १. D. ज्जुइ । २. D. J. V. थप्प० । ३. V. णिजेण । 1. D. अग्नि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy