SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. ४.३ ] हिन्दी अनुवाद सूर्यके समान चन्द्रप्रभ एवं शान्तिनाथके चरित-काव्य रचे हैं, उसी प्रकार कांचन एवं तृणमें समदृष्टिवाले, स्थितप्रज्ञ तथा अपने ज्ञानकी गम्भीरतासे समुद्रको जीत लेनेवाले अन्तिम तीर्थंकर (वीर ) के चरित - काव्यका भी यदि प्रणयन कर दें, तो आप भ्रान्तिरहित, निरुपम एवं मनोहर मेरे अपने सुखोंको परिपूर्ण कर देंगे ।" नेमिचन्द्रकी उस प्रार्थनाको सुनकर बुधजन रूपी हंसों के लिए मानसरोवर के समान कवि श्रीधरने उत्तर दिया घत्ता - " आपने जो कुछ कहा है, वह युक्तियुक्त है । मैं जिस प्रकार जानता हूँ, उसी प्रकार उसे भी अपनी शक्ति के अनुसार तथा जिनेन्द्र के चरणोंकी भक्ति पूर्वक शीघ्र ही लिखकर समाप्त करूंगा ||२|| ३ ग्रन्थ-रचना प्रारम्भ । पूर्व देश की समृद्धि का वर्णन उसने इस प्रकार कहकर सरस्वतीका मनमें स्मरण किया तथा संकल्प-विकल्पोंको त्यागकर भव्य-कमलोंको सम्बोधित करनेवाले गोल्हके पुत्र [ कवि श्रीधर ] ने कहा - "हे बीवा ( नामकी ) पत्नीसे अपने मनको रमानेवाले तथा 'नेमिचन्द्र' इस नाम से प्रसिद्ध तुम ( अब मेरा कथन - माणचरिउ नामक काव्य ) सुनो।" विश्वके समस्त द्वीपोंमें श्रेष्ठ जम्बू द्वीप नामका एक द्वीप है, नक्षत्रराज ( चन्द्रमा ) परिभ्रमण करते रहते । उसी जम्बूद्वीपमें एक दक्षिण दिशा में भरतक्षेत्र स्थित है, जो अनेक प्रकारके धान्य वाले खेतों से विभूषित है । घत्ता - जहाँ पथमें ( थकान के कारण ) खिन्न बैठे हुए पथिकको हंसों की बोली के बहाने ही मानो ऊँचे स्वरोंसे बुलाया जाता है तथा धैर्ययुक्त शब्दोंसे उन्हें करुणापूर्वक जलपान कराया जाता है ॥ ३ ॥ जिसमें मिहिर ( सूर्य ) एवं सुमेरु पर्वत है, जिसकी उसी भरतक्षेत्रमें सुप्रसिद्ध पूर्वदेश है, जिसने अपने गुणोंसे समस्त देशोंको जीत लिया है, तथा जहाँ देवगण भी अपने रम्य त्रिदशावासको दूरसे ही छोड़कर जन्म लेना चाहते हैं, जो नयनोंको सुन्दर लगनेवाले गजयुक्त वनोंसे सुशोभित है, जो अगणित रत्नोंकी खानि है, जहाँ १० नदियोंके किनारे निर्मल जलोंसे परिपूर्ण रहते हैं, जहाँ दूर-दूर तक शालिकी क्यारियाँ फैली हुई हैं, जो नागरवेल ( ताम्बूल ) और पूगद्रुम ( सुपाड़ी ) के वृक्षों से भूषित है, जहाँ प्रणयीजनोंके रमण करनेके लिए रम्य-वाटिकाएँ बनी हुई हैं, जहाँ सुधाके समान रसवाली एवं कमलोंसे सुवासित नदियां प्रवहमान रहती हैं, जहाँके पामरजन ( कृषकवर्ग ) गोधनसे युक्त हैं, जो देश अवग्रह ( वर्षा-प्रतिबन्ध ) से रहित एवं घनसमूहसे सुशोभित है, जहाँके ग्राम मार्गोंसे शोभायमान १५ हैं, मानों अमेय चिन्तामणि - रत्न के समान वे सभीकी मनोकामनाको पूर्ण करनेवाले हों, जहाँकी दिशाएँ पौंड़ा एवं ईखकी वाटिकाओंसे मण्डित रहा करती हैं । उनकी शोभाकी उपमा किससे दी जाय ? ४ सितछत्रा नगर का वर्णन Jain Education International वहाँ उस पूर्व - देशकी भूमिपर स्वर्गपुरीके समान, पुण्यवान् जनोंसे सुशोभित, नाना प्रकारकी मणि-किरणोंसे समृद्ध एवं सार्थक नामवाली सितछत्राकार नाम की नगरी है । जहाँ जलदों के मध्य में छिपा हुआ सूर्य ऐसा प्रतीत होता था, मानो सज्जनोंके ज्ञानरूपी सूर्यसे भयभीत For Private & Personal Use Only १० ५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy