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________________ द्वार १४३ ७० असत्कल्पना से किसी पट्टे को १४ रज्जु लंबा मानकर तिरछी ५७ व खड़ी ५ रेखा खींचना । इससे ऊपर से नीचे तक छप्पन खण्ड होते हैं। एक खण्ड एक रज्जु का चौथा भाग होता है अत: इसे पाद भी कहते हैं। चार खण्ड मिलाकर एक रज्जु बनता है अत: ५६ : ४ = १४ रज्जु परिमाण लोक है। सनाड़ी (जहाँ त्रस जीव होते हैं ऐसी ऊपर से नीचे १४ रज्जु लंबी नाली) का भी यही परिमाण है। खड़ी ५ रेखाओं से चौड़ाई में ४ खंड बनते हैं। ४ खंड = एक रज्जु है अत: त्रसनाड़ी की चौड़ाई सर्वत्र एक रज्जु परिमाण है ॥९०६ ॥ संपूर्ण लोक के चौड़ाई में कहाँ कितने खंड हैं:-सर्वप्रथम ऊर्ध्वलोक के खंडों का वर्णन करते हैं। ऊर्ध्वलोक, समभूतला पृथ्वी के मध्यभाग से लेकर ऊपर लोकान्त तक है। रुचक के मध्यभाग में तिरछी २९ वीं रेखा के ऊपर ४-४ खंड हैं। वे त्रसनाड़ी के अन्तर्वर्ती हैं। वहाँ त्रसनाड़ी के बाहर एक भी खंड नहीं हैं। उससे ऊपरवर्ती दो पंक्तियों में ६-६ खंड हैं। ४ त्रसनाड़ी के मध्य व एक-एक उसके बाहर दोनों ओर हैं। तत्पश्चात् एक ८ खंडों की तथा दूसरी १० खंडों की पंक्ति है। ४ खंड त्रसनाड़ी में हैं तथा क्रमश: २-२ व ३-३ त्रसनाड़ी के बाहर हैं। इसकी उपरवर्ती दो पंक्तियों में १२-१२ खंड हैं। ४ वसनाड़ी में ४-४ दोनों ओर बाहर हैं। उसके पश्चात की दो पंक्तियों में १६-१६ खंड हैं। ४ मध्य में ६-६ त्रसनाड़ी के बाहर दोनों ओर हैं। उसकी ऊपरवर्ती ४ पंक्तियों में २०-२० खंड हैं। ४ मध्य में और ८-८ दोनों ओर बाहर हैं। इस प्रकार ऊर्ध्वलोक की १४ पंक्तियों के उत्तरोत्तर बढ़ते हुए खंड समझना चाहिये ॥९०७ ॥ अब इन्हीं १४ पंक्तियों में उत्तरोत्तर घटते हुए खंड बताते हैं। २० खंड़ों वाली पंक्तियों की ऊपरवर्ती दो पंक्तियों में १६-१६ खंड हैं। उससे ऊपर की दो पंक्तियों में १२-१२ खंड हैं। ऊपर की तीन पंक्तियों में ८-८ खंड हैं। उससे ऊपर की दो पंक्तियों में ६-६ खंड हैं। तत्पश्चात् सबसे. ऊपरवर्ती दो पंक्तियों में मात्र नाड़ीगत ४-४ खंड हैं। इस प्रकार मैंने (टीकाकार ने) अपनी गुरु परंपरा के अनुसार रुचक से लेकर ऊपर लोकान्त पर्यंत खंडों की संख्या बताई, परन्तु कुछ आचार्य “तिरियं चउरो दोसु,” इन दो गाथाओं की व्याख्या भिन्न रूप से करते हैं। उनका कथन है कि-खंडों की स्थापना पूर्वोक्त रीति से भिन्न मिलती है। उनके मतानुसार पूर्वोक्त स्थापना मध्यभाग से ऊपर लोकान्त तक की है। परन्तु अन्य आचार्यों का कहना है कि-खंडों की पूर्वोक्त स्थापना ऊर्ध्व लोकान्त से लेकर लोक के मध्यभाग तक की है ॥९०८ ॥ अब अधोलोक के खंडों का वर्णन करते हैं। लोक के मध्यभाग से लेकर ७वीं नरक तक सभी नरकों में त्रसनाड़ी के मध्य ४-४ खंड हैं। सनाड़ी के बाहर रत्नप्रभा नरक में एक भी खंड नहीं है। दूसरी नरक में त्रसनाड़ी के बाहर दोनों ओर प्रति पंक्ति ३-३ खंड हैं। तीसरी नरक में वसनाड़ी के बाहर ६-६ खंड हैं। चौथी नरक में बाहर ८-८ खंड हैं। पाँचवीं नरक में बाहर १०-१० खंड हैं। छट्ठी नरक में बाहर ११-११ खंड हैं। अन्त में सातवीं नरक में बसनाड़ी से बाहर १२-१२ खंड हैं ।।९०९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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