________________
प्रवचन-सारोद्धार
१४२ द्वार:
वर्ष-भेद
६२
संवच्छरा उ पंच उ चंदे चंदेऽभिवड्डिए चेव। चंदेऽभिवड्डिए तह बिसट्ठिमासेहिं जुगमाणं ॥९०१ ॥
-गाथार्थवर्ष के पाँच भेद हैं—१. चन्द्रवर्ष २. चन्द्रवर्ष ३. अभिवर्धित वर्ष ४. चन्द्र वर्ष तथा ५. अभिवर्धित वर्ष । इन पाँच वर्षों में बासठ मास होते हैं और बासठ मास का एक युग बनता है।
-विवेचनचन्द्रवर्ष, चन्द्रवर्ष, अभिवर्धितवर्ष, चन्द्रवर्ष तथा अभिवर्धितवर्ष इस क्रम से पाँच संवत्सर होते हैं और इन पाँच संवत्सरों से एक युग बनता है। इसलिये ये युगसंवत्सर कहे जाते हैं।
चन्द्रवर्ष–१२ चन्द्रमास से निष्पन्न संवत्सर चन्द्रवर्ष है । इसका काल ३५४१२ अहोरात्र है चन्द्रमास की दिन संख्या २९३२ को १२ से गुणा करने पर वर्ष का दिनमान आता है।
प्रत्येक युग का दूसरा और चौथा संवत्सर चन्द्रवर्ष होता है।
अभिवर्धितवर्ष-चन्द्रवर्ष की अपेक्षा जिस संवत्सर में एक मास अधिक हो वह अभिवर्धित संवत्सर है। इसका दिन मान ३८३४९ अहोरात्र है।
• एक अभिवर्धित मास का परिमाण ३११२१ अहोरात्र है। इसको १२ से गुणा करने पर ३७२ दिन १४५२ अंश हुए। अंश में १२४ का भाग देने पर ११ दिन आते हैं तथा ८.८ अंश शेष रहते हैं। ११ दिन पूर्वोक्त ३७२ में जोड़ने पर ३८३ दिन हुए। ८८ अंश को दो से भाग देने पर अंश हुए, इस प्रकार पाँचवाँ संवत्सर समझना चाहिए। इन पाँच संवत्सर से एक युग बनता है। एक युग में तीन चन्द्र संवत्सर है। एक चन्द्र संवत्सर में १२ महीने होते हैं। तीन को बारह से गुणा करने पर ३ x १२ = ३६ मास हुए। अभिवर्धित संवत्सर युग में दो होते हैं। एक अभिवर्धित संवत्सर में १३ चन्द्रमास होते हैं अत: २ x १३ = २६ मास हुये । चन्द्रमास और अभिवर्धित मास का कुलायोग ३६ + २६ = ६२ मास हुए अर्थात् एक युग में ६२ चन्द्रमास होते हैं ॥९०१ ॥
२४
१२४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org