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________________ ६२ द्वार १४१ 4002058000 गमन में १८३ दिन लगते हैं और एक युग में पाँच उत्तरायण व पाँच दक्षिणायन होते हैं। कुल मिलाकर १० अयन होते हैं। १८३ को १० से गुणा करने पर १८३० अर्थात् एक युग की अहोरात्रि का प्रमाण आता है। यह मूल संख्या है। इसे क्रमश: ६७, ६२, ६१ व ६० संख्या से विभाजित करने पर क्रमश: नक्षत्रमास, चन्द्रमास, ऋतुमास तथा आदित्यमास का दिनमान आता है। १. नक्षत्रमास—एक युग में नक्षत्रमास ६७ होते हैं अत: १८३० में ६७ से भाग देने पर नक्षत्रमास का कालप्रमाण २७२१ अहोरात्रि उपलब्ध होती हैं। २. चन्द्रमास-युग की दिनरात्रि १८३० को ६२ से भाग देने पर २९३२ चन्द्रमास का कालमान आता है। ३. ऋतुमास-१८३० अहोरात्रि में ६१ से भाग देने पर ३० अहोरात्रि ऋतु मास का कालमान प्राप्त होता है। ४. सूर्यमास–१८३० अहोरात्रि में ६० का भाग देने पर ३०५ अहोरात्रि सूर्यमास का कालमान आता है। कहा है कि 'नक्षत्रादि मासों के दिनमान के आनयन का उपाय यह है कि युग की दिनराशि १८३० को क्रमश: ६७, ६२, ६१ व ६० से भाग देना ।' ५. अभिवर्धितमास-युग का तीसरा व पाँचवा वर्ष अभिवर्धित होता है। अभिवर्धितवर्ष में १३ चन्द्रमास होते हैं। १३ चन्द्रमास के कुल दिन ३८३४४ हैं। यथा—एक चन्द्रमास का दिनमान २९३२ अहोरात्रि है। एक चन्द्रमा के दिनमान को १३ से गुणा करने पर ३७७ दिन तथा १९६ अंश आते हैं। ४१६ में ६२ का भाग देने पर ६, दिन हुए। ३७७ + ६ = ३८३४, अभिवर्धित वर्ष के दिन होते हैं। वर्ष में मास १२ होते हैं अत: इनके मास बनाने के लिये अभिवर्धित वर्ष की संख्या में १२ का भाग देने पर ३१ अहोरात्रि उपलब्ध हुई, शेष बची ११ अहोरात्रि । इसको १२४ से गुणा करने पर १३६४ भाग हुए। , को १२४ से गुणा करने पर ८८ भाग हुए। कुल १३६४ + ८८ = १४५२ हुए। इनमें १२ का भाग देने पर १४५२ ’ १२ = १२९ भाग हुए अत: अभिवर्धितमास का प्रमाण ३१९२१ अहोरात्रि का है ॥८९७-९०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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