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________________ प्रवचन-सारोद्धार -गाथार्थमास के पाँच भेद-१. नक्षत्रमास २. ऋतुमास ३. चन्द्रमास ४. सूर्यमास और ५. अभिवर्धितमास। सूत्र में महीनों के ये पाँच भेद बताये हैं ।।८९७ ॥ नक्षत्रमास सत्तावीश अहोरात्र तथा सड़सठीया इक्कीस भाग प्रमाण है। चन्द्रमास उनतीस दिन और बासठीया बत्तीस भाग प्रमाण है। ऋतु-मास तीस दिन का है, आदित्यमास साढ़े तीस दिन का है तथा अभिवर्धितमास इकत्तीस दिन और एक सौ चौबीस भाग में से एक सौ इक्कीस भाग प्रमाण है। इन महीनों की उत्पत्ति की रीति आगम से ज्ञातव्य है ।।८९८-९०० ।। -विवेचन(i) नक्षत्रमास (iii) ऋतुमास (v) अभिवर्धित मास (ii) चन्द्रमास (iv) आदित्य मास (i) अभिजित नक्षत्र से निकलकर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्र को प्रविष्ट होने में जितना समय लगता है, वह कालमान 'नक्षत्रमास' कहलाता है। अथवा चन्द्र को नक्षत्रमण्डल में भ्रमण करने में जितना समय लगता है, वह कालमान ‘नक्षत्रमास' कहलाता है। इसका प्रमाण २७२९ अहोरात्रि का है। (ii) कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक का काल चन्द्रमास कहलाता है अथवा चन्द्र के चार से सम्बन्धित काल ‘चन्द्रमास' है। इसका प्रमाण २९३९ अहोरात्रि का है। (iii) ६० दिन अर्थात् दो मास की एक ऋतु होती है। उसका आधा भाग अर्थात् एकमास (३० दिन) अवयव में समुदाय के उपचार से 'ऋतुमास' कहलाता है। इसका कालमान ३० अहोरात्रि का है। कर्ममास, सावनमास इसी के पर्याय है। (iv) १८३ दिन प्रमाण दक्षिणायण या उत्तरायण का छट्ठा भाग आदित्यमास कहलाता है अथवा सूर्य के चार से सम्बन्धित काल 'आदित्यमास' कहलाता है। इसका प्रमाण ३०- अहोरात्रि का है। (v) एक वर्ष में १२ चन्द्रमास होते हैं किंतु जिस वर्ष में एक चन्द्रमास अधिक होता है, वह 'अभिवर्धित वर्ष' कहलाता है और उसका अधिक मास 'अभिवर्धित मास' कहलाता है। इसका कालमान ३१९२१ अहोरात्रि का है। पूर्वोक्त पाँचों महीनों के कालमान की निष्पत्ति का तरीका आगम में बताया गया है। शिष्यों के अनुग्रहार्थ संक्षेप में यहाँ बताया जाता है। तीन चन्द्र वर्ष और दो अभिवर्धित वर्ष कुल पाँच वर्ष का एक युग होता है और एक युग में १८३० अहोरात्रि होती हैं। यथा सूर्य का दक्षिण से उत्तर की ओर गमन या उत्तर से दक्षिण की ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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