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________________ ६० द्वार १४०-१४१ क -विवेचनकालत्रिक-अतीत, अनागत और वर्तमान काल का वाचक शब्द । जैसे किया, करेगा और करता वचनत्रिक-एक वचन, द्विवचन और बहुवचन के वाचक शब्द। जैसे एक, द्वौ, बहवः । =३ लिंगत्रिक-स्त्रीलिंग, पुल्लिग और नपुंसकलिंग के वाचक शब्द । जैसे इयं स्त्री, अयं पुरुषः, इदं कुलं । =३ परोक्षनिर्देश परोक्ष वस्तु का बोधक शब्द। जैसे स: = वह । ते = वे =१ प्रत्यक्षनिर्देश—प्रत्यक्ष वस्तु का बोधक शब्द । जैसे अयं = यह । =१ उपनयापनयवचन-गुण, अवगुण का बोधक शब्द । जैसे यह स्त्री सुंदर है, किंतु दुःशील है। यहाँ 'सुन्दर है' यह गुण का कथन है, और 'दुःशील है' यह अवगुण का कथन है । =१ उपनयोपनय वचन-गुणों का कथन करना। जैसे यह स्त्री सुन्दर है और सुशीला भी है । =१ अपनयोपनय वचन-दोषों का कथन करके गुण बताना। जैसें यह कुरूपा है किंतु सुशीला अपनयापनय वचन-दोषों का ही कथन करना। जैसे यह स्त्री कुरूपा है और कुशीला भी है। =१ आध्यात्मिकवचन-मन की बात छुपाकर मायावश कुछ अन्य बात कहना चाहता हो, किन्तु बोलते समय सहसा सत्य बात मुँह से बोल देना। =१ ॥८९६ ।। १४१ द्वार: मास-भेद मासा य पंच सुत्ते नक्खत्तो चंदिओ य रिउमासो। आइच्चोऽविय अवरोऽभिवड्डिओ तह य पंचमओ ॥८९७ ॥ अहरत्त सत्तवीसं तिसत्तसत्तट्ठिभाग नक्खत्तो। चंदो अउणत्तीसं बिसट्ठिभाया य बत्तीसं ॥८९८ ॥ उउमासो तीसदिणो आइच्चो तीस होइ अद्धं च । अभिवड्डिओ य मासो चउवीससएण छेएणं ॥८९९ ॥ भागाणिगवीससयं तीसा एगाहिया दिणाणं तु।। एए जह निप्फत्तिं लहंति समयाउ तह नेयं ॥९०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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