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द्वार १४०-१४१
क
-विवेचनकालत्रिक-अतीत, अनागत और वर्तमान काल का वाचक शब्द । जैसे किया, करेगा और करता
वचनत्रिक-एक वचन, द्विवचन और बहुवचन के वाचक शब्द। जैसे एक, द्वौ, बहवः । =३
लिंगत्रिक-स्त्रीलिंग, पुल्लिग और नपुंसकलिंग के वाचक शब्द । जैसे इयं स्त्री, अयं पुरुषः, इदं कुलं । =३
परोक्षनिर्देश परोक्ष वस्तु का बोधक शब्द। जैसे स: = वह । ते = वे =१ प्रत्यक्षनिर्देश—प्रत्यक्ष वस्तु का बोधक शब्द । जैसे अयं = यह । =१
उपनयापनयवचन-गुण, अवगुण का बोधक शब्द । जैसे यह स्त्री सुंदर है, किंतु दुःशील है। यहाँ 'सुन्दर है' यह गुण का कथन है, और 'दुःशील है' यह अवगुण का कथन है । =१
उपनयोपनय वचन-गुणों का कथन करना। जैसे यह स्त्री सुन्दर है और सुशीला भी है । =१ अपनयोपनय वचन-दोषों का कथन करके गुण बताना। जैसें यह कुरूपा है किंतु सुशीला
अपनयापनय वचन-दोषों का ही कथन करना। जैसे यह स्त्री कुरूपा है और कुशीला भी है। =१
आध्यात्मिकवचन-मन की बात छुपाकर मायावश कुछ अन्य बात कहना चाहता हो, किन्तु बोलते समय सहसा सत्य बात मुँह से बोल देना। =१ ॥८९६ ।।
१४१ द्वार:
मास-भेद
मासा य पंच सुत्ते नक्खत्तो चंदिओ य रिउमासो। आइच्चोऽविय अवरोऽभिवड्डिओ तह य पंचमओ ॥८९७ ॥ अहरत्त सत्तवीसं तिसत्तसत्तट्ठिभाग नक्खत्तो। चंदो अउणत्तीसं बिसट्ठिभाया य बत्तीसं ॥८९८ ॥ उउमासो तीसदिणो आइच्चो तीस होइ अद्धं च । अभिवड्डिओ य मासो चउवीससएण छेएणं ॥८९९ ॥ भागाणिगवीससयं तीसा एगाहिया दिणाणं तु।। एए जह निप्फत्तिं लहंति समयाउ तह नेयं ॥९०० ॥
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