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________________ ४० काल साधारण सव्यंजन =३ भाग पानी = २ भाग वायु संचार = १ भाग भोजन | भोजन = ३ मध्यम शीत शीत भाग पानी = २ भाग वायु संचार = १ भाग Jain Education International शीततर भोजन =४ भाग पानी = १ भाग वायु संचार = १ भाग मध्यम उष्ण भोजन = ३ उष्ण भाग पानी = २ भाग वायु संचार = १ भाग द्वार १३२-१३३ उष्णतर भोजन = २ भाग पानी = ३ भाग • वायु संचार के लिये पेट का एक भाग खाली रखना आवश्यक है अन्यथा संचार के अभाव में वायु शरीर में रोग पैदा करेगा । For Private & Personal Use Only वायु संचार =१ भाग • भोजन – कूर, मूंग, लड्डू आदि । व्यंजन - छाछ, ओसामन, शाक आदि । चार भाग - भोजन और पानी के दो भाग अति उष्ण व अतिशीत काल में न्यूनाधिक होते रहते वे चर हैं हैं, अत: I स्थिर भाग दो भाग भोजन के और एक भाग पानी का किसी भी काल में न्यूनाधिक नहीं होते अतः वे स्थिर हैं ।।८६६-८७० ॥ १३३ द्वार : वसतिशुद्धि पट्ठीवंसो दो धारणाउ चत्तारि मूलवेलीओ । मूलगुणेहिं विसुद्धा एसा हु अहागडा वसही ||८७१ ॥ वंसगकडणोक्कंबण छायण लेवण दुवारभूमी य । परिकम्मविप्पमुक्का एस मूलुत्तरगुणेसु ॥८७२ ॥ दूमिय धूविय वासिय उज्जोइय बलिकडा अवत्ता य । सित्ता मट्ठावि य विसोहिकोडिं गया वसही ||८७३ ॥ मूलुत्तरगुणसुद्धं थीपसुपंडगविवज्जियं वसहिं । सेविज्ज सव्वकालं विवज्जए हुंति दोसा उ ॥ ८७४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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