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________________ प्रवचन-सारोद्धार १३२ द्वार: भोजन-भाग बत्तीसं किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला ॥८६६ ॥ अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा दवस्स दो भाए। वायपवियारणट्ठा छब्भागं ऊणयं कुज्जा ॥८६७॥ सीओ उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेयव्वो। साहारणंमि काले तत्थाहारे इमा मत्ता ॥८६८ ॥ सीए दवस्स एगो भत्ते चत्तारि अहव दो पाणे । उसिणे दवस्स दुन्नी तिन्नी वि सेसा उ भत्तस्स ॥८६९ ॥ एगो दवस्स भागो अवट्ठिओ भोयणस्स दो भागा। वखंति व हायंति व दो दो भागा उ एक्केक्के ॥८७० ॥ -गाथार्थभोजन के भाग-पुरुष का आहार प्रमाण बत्तीस कवल तथा स्त्री का अट्ठावीस कवल है ॥८६६ ॥ पेट को छ: भागों में विभक्त करना। इनमें से तीन भाग सव्यंजन आहार के हैं। दो भाग प्रवाही के तथा एक भाग वायु के संचरण का है ।।८६७ ॥ काल के तीन भेद हैं-शीत, उष्ण व शीतोष्ण। पूर्वोक्त आहार प्रमाण शीतोष्णकाल का है ।।८६८॥ __शीतकाल में पानी का एक भाग, भोजन के चार अथवा तीन भाग तथा गर्मी में पानी के दो अथवा तीन भाग तथा शेष भाग भोजन के हैं ।।८६९ ।। पानी का एक भाग तथा भोजन के दो भाग सदा अवस्थित हैं पर भोजन और पानी के दो-दो भागों की हानि-वृद्धि होती रहती है ॥८७० ॥ -विवेचनपेट के छ: भाग करके कालानुसार उन्हें भोजन, पानी और वायु के भाग में बाँटना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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