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________________ प्रवचन-सारोद्धार ४१ -गाथार्थवसति-शुद्धि—एक पृष्ठवंश, दो मूलधारक तथा चार मूल बल्लियाँ जिस वसति में पहले से लगी हो वह यथाकृत वसति है। ऐसी वसति मूलगुणशद्ध होती है ।।८७१॥ पृष्ठवंश, कटन, उत्कंबन, आच्छादन, लेपन, दरवाजा लगाना, आंगन समतल करना, आदि परिकर्मों से रहित वसति मूलोत्तर-गुणविशुद्ध वसति है ।।८७२ ।। दूमित, धूपित, वासित, उद्योतित, बलिकृत, लिंपित, सिंचित तथा कचरा आदि निकालकर साफ की हुई वसति विशोधिकोटी गत है ।।८७३ ।। मूल तथा उत्तर गुण से विशुद्ध स्त्री, पशु, नपुंसक रहित वसति में वास करे। वसति सम्बन्धी दोषों का त्याग करे ॥८७४॥ -विवेचनस्त्री, पशु, पण्डकरहित, मूल और उत्तर गुण से शुद्ध वसति में साधु को रहना कल्पता है। मूलगुण-तिरछा पटड़ा जिस पर छत डाली जाती है वह पृष्ठवंश कहलाता है। दो खंभे (मूलधारक) जिन पर पटड़े के अन्तिम छोर टिकाये जाते हैं तथा चार बाँस की बल्लियाँ होती हैं, जो दो मूलधारकों के दोनों ओर एक-एक घर के चारों कोनों में रखी जाती हैं, जिन्हें 'मूलवेलि' कहते हैं। इस प्रकार १ + २ + ४ = ७ गुण से युक्त वसति मूलगुण वाली कहलाती है। ऐसी वसति यदि गृहस्थ ने अपने स्वयं के लिये बनाई हो तो वह वसति मूलगुण विशुद्ध कहलाती है। यदि वही वसति मुनियों के लिये बनाई गई हो तो ‘आधाकर्म' दोष से दूषित होती है। मुनियों का संकल्प करके बनाई गई वसति/आवास आधाकर्मी है ॥८७१ ॥ उत्तरगुण-दो तरह के हैं-(i) मूलोत्तरगुण (ii) उत्तरोत्तरगुण . (i) मूलभूत जो उत्तरगुण मूलोत्तर गुण हैं, वे सात प्रकार के हैं :१. वंशक –'मध्यवल्ली' के ऊपर छत बनाने के लिये बांस आदि डालना । २. कटन -आस-पास चटाई आदि से ढंकना। ३. उत्कम्बन -बल्ली आदि के ऊपर बाँस की खपचियाँ बाँधना। ४. छादन --कुशादि से आच्छादित करना। ५. लेपन -गोबर आदि से भींत आदि लीपना। ६. द्वार -द्वार एक दिशा से हटाकर दूसरी दिशा में बनाना। छोटे द्वार को बड़ा करवाना। ७. भूमि -विषम भूमि को समतल बनाना । जिस वसति में पूर्वोक्त सात प्रकार का परिकर्म (संस्कार) साधु के लिये नहीं किया गया हो वह वसति मूलोत्तरगुण शुद्ध कहलाती है ॥८७२ ।। ___(ii) उत्तरभूत जो उत्तरगुण, उत्तरोत्तर गुण हैं, वे आठ प्रकार के हैं :१. दूमिया -भीत को प्लास्तर (लेपन) आदि करवाकर चीकनी बनाना। खड्डी, चूने आदि से पुताई करवाकर उज्ज्वल करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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