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________________ द्वार २७१ ४३२ उ ads करना चन्द्रप्रतिमा की यवमध्य रीति है। इसके अनुसार तप शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर अमावस्या को पूर्ण होता है। इसमें भिक्षाग्रहण की विधि निम्न है सुदी एकम को १ दत्ति, दूज को २ दत्ति, तीज को ३ दत्ति यावत् पूर्णिमा को १५ दत्ति ग्रहण करे। वैसे ही वदी एकम को १४ दत्ति, दूज को १३ दत्ति, तीज को १२ दत्ति यावत् चौदश को १ दत्ति तथा अमावस्या को चन्द्र की एक भी कला दिखाई न देने से उपवास करना। इस प्रकार तप के आदि व अन्त में भिक्षा प्रमाण अल्प व मध्य में विपुल होने से यह यवमध्य चन्द्रप्रतिमा तप है। वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा तप कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा को पूर्ण होता है कयोंकि वज्र के अंतिम दोनों भाग स्थूल होते हैं तथा मध्य भाग सूक्ष्म होता है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को चन्द्र के विमान की १४ कला दिखाई देती है। दूज को १३, तीज को १२ यावत् चौदश को १ तथा अमावस्या को एक भी कला दिखाई नहीं देती । पुन: शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को चन्द्र के विमान की १ कला, दूज को २ यावत् पूर्णिमा को १५ कला दिखाई देती है। इसका यह तात्पर्य है कि जैसे चन्द्र महीने के आदि व अन्त भाग में स्थूल होता है तथा मध्यभाग में सूक्ष्म होता है वैसे ही तप करना चन्द्र प्रतिमा की वज्रमध्यरीति है। इसमें भिक्षाग्रहण की विधि निम्न है वद एकम को १४ कवल या दत्ति, दूज को १३ कवल, यावत् चौदश को १ कवल तथा अमावस्या को एक भी कला दिखाई न देने से उपवास करना । पुन: शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को १ दत्ति या कवल, दूज को २ दत्ति या कवल यावत् पूर्णिमा को १५ दत्ति या कवल ग्रहण करना। इस प्रकार तप के आदि व अन्त में भिक्षा प्रमाण विपुल व मध्य में सूक्ष्म होने से यह वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा तप है ।।१५५४-६० ।। २९. सप्तसप्तमिका-यह तप सात बार सात-सात दिन तक करके परिपूर्ण होता है यह तप क्ल ४९ दिन का है। प्रथम सप्तक में प्रतिदिन भोजन की १ दत्ति, द्वितीय सप्तक में प्रतिदिन भोजन की २ दत्ति यावत् सातवें सप्तक में भोजन की ७ दत्ति ग्रहण की जाती है। इसी तरह पानी की दत्ति भी समझना। अन्ये तु-सप्तक के प्रथम दिन में १ दत्ति, दूसरे दिन में २ दत्ति, तीसरे दिन में ३ दत्ति यावत् सातवें दिन में ७ दत्ति ग्रहण की जाती है। इसी प्रकार सभी सप्तक में समझना । व्यवहारभाष्य में ऐसा कथन है। जो तप सात सप्तकों से परिपूर्ण होता है, वह सप्तसप्तमिका तप है। ३०. अष्टअष्टमिका-जो तप आठ अष्टकों (८ दिन = १ अष्टक) से पूर्ण होता है वह अष्टअष्टमिका तप है। इसमें प्रथम अष्टक में प्रतिदिन १ दत्ति, दूसरे अष्टक में प्रतिदिन २ दत्ति यावत् आठवें में प्रतिदिन ८ दत्ति ग्रहण की जाती है। यह तप ८ x ८ = ६४ दिन में पूर्ण होता है। ३१. नवनवमिका—जो तप नव नवकों (९ दिन = १ नवक) से पूर्ण होता है वह 'नवनवमिका' तप है। प्रथम नवक में प्रतिदिन १ दत्ति, द्वितीय नवक में प्रतिदिन २ दत्ति यावत् नौवें नवक में प्रतिदिन ९ दत्ति ग्रहण की जाती है। यह तप कुल ९ x ९ = ८१ दिन में पूर्ण होता है। ३२. दशदशमिका—जो तप दश दशकों (१० दिन : १ दशक) में पूर्ण होता है वह दशदशमिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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