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________________ प्रवचन - सारोद्धार ४३१ से एक-एक कला घटते घटते अमावस्या को चन्द्र की मात्र १ कला ही शेष रह जाती है। वैसे यह तप भी सुदी एकम को १ कवल, दूज को २ कवल यावत् पूर्णिमा को १५ कवल, दूज को १४ कवल यावत् अमावस्या को १ कवल से पूर्ण होता है। इस प्रकार यवमध्य चन्द्र प्रतिमा तप एकमास में संपूर्ण होता है 1 सुद २ Jain Education International ३ कवल १५ १ व ४५ यवमध्य चन्द्रप्रतिमा १५-१ २ १..२..३..४..५.१५-१५.१४.१३..१२.१ क व ल ... १४ २ .... वज्रमध्य— जैसे वज्र मध्य में सूक्ष्म व दोनों किनारों पर स्थूल होता है वैसे जो तप मध्य में सूक्ष्म, प्रारम्भ व अन्त में स्थूल होता है वह वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा तप हैं। यह तप कृष्ण प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है । इस तप में कृष्ण एकम को १५ कवल दूज को १४ कवल, तीज को १३ कवल यावत् अमावस्या को १ कवल पुन: सुदी एकम को १ कवल, दूज को दो कवल, तीज को ३ कवल यावत् पूनम को १५ कवल ग्रहण किये जाते हैं। इस प्रकार यवमध्य व वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमा तप होता है । यह पञ्चाशक ग्रन्थ के अनुसार समझना । कवल के स्थान पर 'दत्ति' अर्थात् १ दत्ति, २ दत्ति यावत् १५ दत्ति ग्रहण करने का भी वर्णन आता 1 ३ दी ३० ४ ५ क व ल सु ३० ..११..१ २ कवल १५ १५ वद दी व्यवहारचूर्णि के अनुसार चन्द्रविमान के कुल १५ भाग किये गये हैं। वे भाग 'कला' कहलाते हैं। शुक्लपक्ष की एकम को चन्द्र के विमान की १ कला दिखाई देती है, दूज को २ कला यावत् पूर्णिमा को १५ कला से पूर्ण चन्द्र दिखाई देता है । कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को एक कला से न्यून दूज को २ कला से न्यून, तीज को ३ कला से न्यून यावत् अमावस्या को एक भी कला दिखाई नहीं देती। इससे तात्पर्य यह हुआ कि जैसे चंद्र महीने के प्रारम्भ में अल्प, मध्य में पूर्ण तथा अंत में सर्वथा हीन हो जाता है वैसे ही तप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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