SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४३३ 5: 45 तप है। प्रथम दशक में प्रतिदिन १ दत्ति, द्वितीय दशक में प्रतिदिन २ दत्ति यावत् दशम दशक में प्रतिदिन १० दत्ति ग्रहण की जाती है। इस प्रकार यह तप कुल १० x १० = १०० दिन में पूर्ण होता है। • सप्तसप्तमिका आदि चारों प्रतिमायें (तप) ९ महीने २४ दिन में पूर्ण होती है। दत्ति का परिमाण सप्तसप्तमिका प्रतिमा में १९६ दत्ति । अष्टाष्टमिका प्रतिमा में २८० दत्ति । नवनवमिका प्रतिमा में ४०५ दत्ति । दशदशमिका प्रतिमा में ५५० दत्ति ॥१५६१-६३ ।। ३३. आयंबिल वर्धमान तप—'एतदाचाम्लवर्धमाननामकं महातपश्चरणं ।' १ आयंबिल = १ उपवास २ आयंबिल १ उपवास ३ आयंबिल १ उपवास ४ आयंबिल १ उपवास ५ आयंबिल १ उपवास यावत् १०० आयंबिल = १ उपवास इस प्रकार १०० उपवास + ५०५० आयंबिल = ५१५० कुल दिन अर्थात् यह तप १४ वर्ष ३ महीने और २० दिन में सम्पूर्ण होता है ॥१५६४-६५ ॥ ३४. गुणरत्नसंवत्सर तप—विशेष निर्जरा आदि गुण-रत्नों की उपलब्धि का साधन गुणरत्नवत्सर या गुणरत्नसंवत्सर तप कहलाता है। यह तप १ वर्ष, ४ महीने में पूर्ण होता है। प्रथम मास में एकान्तर उपवास, दूसरे मास में एकान्तर छट्ठ, तीसरे मास में एकान्तर अट्ठम व चौथे मास में एकान्तर दशमभक्त (चोला) यावत् १६वें मास में एकान्तर १६ उपवास। इस प्रकार यह तप १६ मास में पूर्ण होता है। इसमें तप दिन १३ मास, १७ दिन तथा पारणा ७३ हैं। • इस तप में दिन में उत्कटुक आसन में एवं रात्रि में वीरासन में वस्त्र रहित रहना। अट्ठमादि तप के महीने में, यदि दिन की कमी रहती हो तो उतने दिन आगे के महीने से लेकर दिन की पूर्ति करना । यदि महीने के दिन बढ़ते हो तो उन्हें अगले महीने में डाल देना ॥१५६६-६९ ।। शास्त्रों में स्कंधक आदि मुनियों के द्वारा आराधित अनेकानेक तप हैं। उन्हें पृथक्-पृथक् बताना संभव नहीं होता अत: पूर्वोक्त तपों के अतिरिक्त शेष अंग, उपांग, ईर्यापथिकी, शक्रस्तव, स्थापनार्हस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव, पंचमंगल-महाश्रुतस्कंध के उपधानादि तप जिस विधि से सिद्धान्त में बताये हैं, वे सभी अन्यान्य ग्रन्थों से जानना। (टीकाकार द्वारा निर्मित समाचारी में देखें-विशेष तपों का वर्णन) ॥१५७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy