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________________ प्रवचन - सारोद्धार कहलाता है । यह तप भी रत्नावली की तरह ही होता है । मात्र इतना अंतर है कि दाड़िमपुष्पों में अट्ठम के स्थान पर छट्ठ, वैसे पदक में भी सर्वत्र छट्ठ ही होता है अतः इस तप का प्रमाण इस प्रकार होता है— काहलिका = १२ उपवास, दाड़िमपुष्प = ३२ उपवास, सरयुगल = २७२ उपवास, पदक = ६८ उपवास कुल उपवास = ३८४ व पारणे = ८८ मिलकर एक परिपाटी ४७२ दिन अर्थात् १ वर्ष, ३ मास व २२ दिन में पूर्ण होती है । ४ परिपाटी ४७२४ = ५ वर्ष २ मास व २८ दिन में संपूर्ण होती है I ‘अन्तकृद्दशा' के अनुसार कनकावली तप में पदक व दाड़िमपुष्प में छट्ट के स्थान पर अट्ठम रत्नावली तप में अट्ठम के स्थान पर छट्ठ करने का कहा है । चारों परिपाटी में पारणा का स्वरूप पूर्ववत् समझना ॥१५२८-२९ ॥ ११. भद्रतप—–पाँच लता (परिपाटी) में यह तप पूर्ण होता है । इस तप में ७५ उपवास २५ पारणे कुल १०० दिन लगते हैं । इसका क्रम २ ४ ७ ३ ६ २ १ २ १२. महाभद्रतप १ ५ ५ २ ४ Jain Education International २ ५ १ ४ ७ ३ ६ ४ १ ३ ५ ३ ६ २ ५. १ ४ ७ ४ ७ ३ ६ २ ५ १ ३ ५ २ ४ १ ५ १ ४ ७ ३ ६ २ For Private & Personal Use Only ४ १ ३ ५ २ ६ २ ५. १ ४ ७ ३ ७ ३ ६ २ ५ १ ४ ५ २ ४२७ ४ १ ३ ।। १५३०-३१ ।। १ लता २ लता ३ लता ४ लता ५ लता ६ लता ७ लता www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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