SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४२५ पारणे का स्वरूप प्रथम परिपाटी में पारणे में सर्वरस भोजन ग्रहण करना। द्वितीय परिपाटी में पारणे में विगयरहित आहार ग्रहण करना। तृतीय परिपाटी में पारणे में अलेपकृत वाल, चना आदि का आहार करना। चतुर्थ परिपाटी में पारणे में परिमित आहार वाला आयंबिल करना ।।१५१५-१८ ॥ ७. महासिंहनिष्क्रीड़ित-जिसमें लघुसिंहनिष्क्रीड़ित की अपेक्षा उपवास की संख्या अधिक हो वह महासिहनिष्क्रीड़ित है। शेष व्याख्या पूर्ववत् है। इसमें तपाराधन का क्रम इस प्रकार है महासिंहनिष्क्रीड़ित तपः यह एक परिपाटी है। इस प्रकार ४ बार करने से यह तप संपूर्ण होता है। इस तप की एक परिपाटी में एक वर्ष, ६ महीने और १८ दिन लगते हैं इसे ४ से गुणा करने पर ६ वर्ष, दो मास व १२ दिन में तप पूर्ण होता है। एक परिपाटी में ४९७ उपवास तथा ६१ पारणे होते हैं। चारों परिपाटी में पारणे का स्वरूप लघुसिंहनिष्क्रीड़ित की तरह समझना चाहिये ।।१५१९-२२ ।। ८. मुक्तावली—जिस तप की संख्या को यथाविधि पट्ट पर लिखा जाये तो मोतियों की माला का आकार बने वह तप मुक्तावली तप है। इसमें तपाराधना का क्रम इस प्रकार होता है। यह एक परिपाटी है। इसकी तप संख्या ३०० उपवास व ६० पारणे हैं। इस प्रकार इस तप की १ परिपाटी १ वर्ष में (३६० दिन में) पूर्ण होती है तथा ४ परिपाटी ४ वर्ष में पूर्ण होती है अर्थात् यह तप ४ वर्ष में पूर्ण होता है। 'अन्तकृद्दशांगसूत्र' के अनुसार इसकी स्थापना इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy