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प्रवचन-सारोद्धार
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वसति से सात घर के भीतर ग्राम-प्रधान, ग्राम-प्रधान रूप में नियुक्त व्यक्ति, विशाल परिवार वाला, शय्यातर अथवा कोई विशिष्ट व्यक्ति मर गया हो तो एक अहोरात्रि
तक स्वाध्याय करना नहीं कल्पता। • दोष—ऐसी स्थिति में यदि साधु स्वाध्याय करे तो लोगों को साधु के प्रति अप्रीति हो कि
ये कैसे लोग हैं ? इन्हें कोई दुःख नहीं है । अथवा कोई भी न सुन सके इस प्रकार स्वाध्याय
करे। ६. स्त्री का रुदन सुनाई दे तब तक भी स्वाध्याय करना नहीं कल्पता ॥१४६१-६३ ।।
५. शारीरिक-शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण। इसके दो भेद हैं- (i) तिर्यंच सम्बन्धी (ii) मनुष्य सम्बन्धी।
(i) तिर्यंच सम्बन्धी–तिर्यंच सम्बन्धी अस्वाध्याय के कारण भी तीन प्रकार के हैं—(i) जलचर सम्बन्धी (ii) स्थलचर सम्बन्धी व (iii) खेचर सम्बन्धी।
• मछली आदि जल में उत्पन्न होने वाले प्राणियों से सम्बन्धित रक्त, मांस आदि जलचर
सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है। • गाय, भैंस आदि से सम्बन्धित रक्त, मांस आदि स्थलचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है। • मोर, कबूतर आदि से सम्बन्धित रक्त, मांस आदि खेचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक है।
पूर्वोक्त तीनों से सम्बन्धित अस्वाध्यायिक (रक्त, मांस, मृतकलेवर आदि) द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव के भेद से पुन: चार प्रकार का है।
१. द्रव्यत:-तीनों प्रकार के तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय जीवों का रक्त, मांस आदि अस्वाध्यायिक है। विकलेन्द्रिय के रुधिर आदि अस्वाध्यायिक नहीं है।
२. क्षेत्रत:-तीनों प्रकार के तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय जीवों का रुधिर आदि साठ हाथ के भीतर पड़ा हो तो अस्वाध्यायिक है इससे आगे का नहीं ।
३. कालत:-तिर्यंच पंचेन्द्रिय का मांस आदि जब से पड़ा हो तब से लेकर तीन प्रहर तक स्वाध्याय करना नहीं कल्पता। पर बिल्ली आदि के द्वारा मारा हुआ चूहा आदि पड़ा हो तो आठ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
४. भावत:-नंदी आदि सूत्र का स्वाध्याय करना नहीं कल्पता। • विशेष—यदि तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय के मांस आदि को कौए, कुत्ते आदि के द्वारा उस स्थान में
चारों ओर बिखेर दिया गया हो और वह गाँव हो तो तीन गली के पश्चात् स्वाध्याय करना कल्पता है। यदि शहर है और उधर से सेना सहित राजा, देवताओं के रथ व अन्य भी अनेक प्रकार के वाहन निकलते हों तो एक गली को छोड़कर भी स्वाध्याय किया जा सकता है। यदि समूचा गाँव मांस आदि के पुद्गलों से व्याप्त हो गया हो तो गाँव के बाहर स्वाध्याय करंना कल्पता है। अथवा रुधिर आदि के भेद से जलचर, स्थलचर व खेचर सम्बन्धी अस्वाध्यायिक चार-चार प्रकार का है ॥१४६५ ॥
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