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प्रवचन - सारोद्धार
सूत्र में आगे कहा है कि
'एएसिं मज्झाओ एगे निव्वड गुणगणाइन्ने । सव्वुत्तमभंगेणं तित्थयरस्साणुसरिस गुरू ।। '
अर्थात् इन सामान्य आचार्यों में से सर्वोत्तम भांगे में गुणगुण से समन्वित तीर्थंकर के तुल्य कुछ आचार्य होते हैं ।
आर्य = आरात् + यातः जो सभी हेयधर्मों से दूर हो चुके हैं, वे आर्य कहलाते हैं ।
सब से अन्तिम आचार्य दुप्पसहसूरि होंगे ।
दुप्पसहसूरि-पाँचवें आरे के अंत में होंगे। इनका शरीर प्रमाण दो हाथ एवं आयुष्य बीस वर्ष की होगी । महान् तपस्वी एवं आसन्न मुक्तिगामी होंगे। मात्र दशवैकालिक के ज्ञाता होने पर भी चौदहपूर्वी की तरह इन्द्र भी पूज्य होंगे || १४३७ ॥
२६५ द्वार :
३८७
श्रीभद्रकृत्तीर्थप्रमाण
ओसप्पिणिअंतिमजिण - तित्थं सिरिरिसहनाणपज्जाया । संखेज्जा जावइया तावयमाणं धुवं भविही ॥१४३८ ॥ __-गाथार्थ
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उत्सर्पिणी के अन्तिम जिन का शासन-परिमाण - ऋषभदेव परमात्मा के केवलज्ञान के पर्यायों की जितनी संख्या है, उतने काल तक उत्सर्पिणी के अन्तिम तीर्थंकर भद्रकृत् जिनेश्वर का शासन चलेगा ।।१४३८ ।।
-विवेचन
ऋषभदेव परमात्मा का केवलज्ञान पर्याय एक हजार वर्ष न्यून एक लाख पूर्व वर्ष का है । उनकी केवलज्ञानी अवस्था की जितनी पर्यायें हैं, इतने काल परिमाण का उत्सर्पिणी के अन्तिम तीर्थंकर अर्थात् २४वें तीर्थंकर भद्रकृत् का शासनकाल होगा। सारांश यह है कि भद्रकृत् तीर्थंकर का शासन काल संख्याता लाख पूर्व वर्ष का होगा || १४३८ ॥
२६६ द्वार :
देवों का प्रविचार -
दो कायप्पवियारा कप्पा फरिसेण दोन्नि दो रूवे ।
सद्दे दो चउर मणे नत्थि वियारो उवरि यत्थी ॥१४३९ ॥
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