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________________ द्वार २६३-२६४ ३८६ पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा समय अनन्तगुण है। कारण, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा एक परमाणु का भावी समय अनन्त है। इस प्रकार अनन्त परमाणुओं का, सभी द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्धों का भिन्न-भिन्न द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से भावी समय अनन्त है तथा सभी का अतीत काल भी अनन्त है। अत: यह सिद्ध है कि पुद्गल की अपेक्षा समय अनन्तगुणा है। समय की अपेक्षा सर्व-द्रव्यों की संख्या विशेषाधिक है, क्योंकि द्रव्यों में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और समय सभी का समावेश होता है। क्योंकि सारे द्रव्य मिलकर भी अद्धासमय के अनन्तभाग जितने ही होते हैं। अत: उनको सम्मिलित करने पर भी समय की अपेक्षा सर्वद्रव्य की संख्या विशेषाधिक ही होती है। सर्व-द्रव्यों की अपेक्षा सर्व-प्रदेशों की संख्या अनन्तगुण है। क्योंकि दूसरे द्रव्यों के प्रदेशों की अपेक्षा, केवल अलोकाकाश के प्रदेश अनन्तगुणा अधिक हैं। सर्वद्रव्य प्रदेशों की अपेक्षा उनके पर्याय अनन्तगुण हैं, क्योंकि एक-एक आकाश-प्रदेश में अनन्त-अनन्त अगुरु-लघु पर्यायें होती हैं ॥१४३२-३६ ॥ |२६४ द्वार : | युगप्रधान-सूरि-संख्या जा दुप्पसहो सूरी होहिंति जुगप्पहाण आयरिया। अज्जसुहम्मप्पभिई चउसहिया दुन्नि य सहस्सा ॥१४३७ ॥ -गाथार्थयुगप्रधान आचार्यों की संख्या—आर्य सुधर्मास्वामी से लेकर दुप्पसहसूरि पर्यंत दो हजार और चार युगप्रधान आचार्य होंगे॥१४३७ ।। -विवेचनयुगप्रधान = परमात्मा के शासन के रहस्य को जानने वाले, विशिष्टतर मूल और उत्तरगुण से सम्पन्न प्रस्तुत काल की अपेक्षा से भरतक्षेत्र में प्रधानभूत आचार्य । आर्य सुधर्मा, जंबू, प्रभव, स्वयंभव आदि गणधरों की पट्ट-परम्परा से लेकर पाँचवें आरे के अंतिम युगप्रधान दुप्पसहसूरि तक = २००४ युगप्रधान होते हैं। • महानिशीथ में 'इत्थं चायरियाणं पणपन्ना होंति कोडिलक्खाओ। कोडिसहस्से कोडिसए य तह इत्तिए चेवत्ति ।।' यहाँ ५५ लाख करोड़, ५५ हजार करोड़, ५५ सौ करोड़ की संख्या आचार्यों की बताई है, वह सामान्य मुनिपति की अपेक्षा से बतायी है। यह संख्या युगप्रधान आचार्यों की नहीं है, क्योंकि उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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