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प्रवचन-सारोद्धार
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पर ३२ संख्या आती है अत: असत्कल्पना से मनुष्यों की अधिकतम संख्या ३२ हुई। ऐसा समझना चाहिये।
मनुष्य की अपेक्षा नरक के जीव असंख्याता गुणा हैं, जैसे घनीकृत लोक की सात रज्जु लंबी ऊँची और एक आकाश प्रदेश चौड़ी सूची-श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उतने नरक के जीव
श्रेणियों का प्रमाप-एक अंगुल प्रमाण क्षेत्र में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उनके तीन वर्गमूल निकालकर पहले और तीसरे वर्गमूल का गुणा करना। गुणनफल की जितनी संख्या आये, उतनी सूची श्रेणी समझना। माना कि अंगुल प्रमाण क्षेत्र में दो सौ छप्पन आकाश प्रदेश हैं, उनका प्रथम वर्गमूल १६, द्वितीय वर्गमूल ४ और तृतीय वर्गमूल २ है। प्रथम वर्गमूल १६ को तृतीय वर्गमूल २ से गुणा करने पर १६ x २ = ३२ होते हैं। अत: ३२ श्रेणियों के आकाश प्रदेश प्रमाण नरक के जीव हैं।
नरक-जीवों की अपेक्षा देवता असंख्यात गुण अधिक है क्योंकि व्यतर, ज्योतिष देव असंख्याता
देवताओं का प्रमाण५ भवनपति-भवनपति देवों की संख्या प्रतर के असंख्यातवें भाग में स्थित श्रेणियों के आकाश प्रदेशों के समरूप है। श्रेणियों की रीति निम्न है
अंगल प्रमाण क्षेत्र में जितने आकाश-प्रदेश होते हैं, उनका एक बार वर्गमल निकालना। वर्गमल की संख्या से प्रतर के मूल संख्या का गुणा करने पर जितनी संख्या आती है, उतनी श्रेणियों की संख्या समझना। इतनी प्रतर श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतने भवनपति देव हैं।
व्यंतर-ज्योतिषी-सात राज ऊँचे, लम्बे तथा एक आकाश-प्रदेश चौड़े प्रतर के असंख्यात भागवर्ती सात राज ऊँची और एक आकाश-प्रदेश चौड़ी सूची श्रेणियों के आकाश-प्रदेश प्रमाण व्यन्तर और ज्योतिष देव है।
सिद्ध देवों की अपेक्षा सिद्ध अनंतगुणा हैं। सिद्धों का विरह-काल अधिक से अधिक छ: महीने का है। छ: महीने के पश्चात् कोई न कोई आत्मा अवश्य ही सिद्ध होता है। सिद्धिगमन अनन्त काल से चल रहा है तथा सिद्ध होने के पश्चात् आत्मा का संसार में पुनरागमन नहीं होता।
सिद्धों की अपेक्षा तिर्यंच अनन्तगुण है । कारण-तिर्यंचगति में असंख्यात निगोद का समावेश होता है। (अ) चौदह रज्जुप्रमाण लोक के जितने आकाश-प्रदेश हैं उनसे अनंतगुण अधिक हैं। (ब) अनन्तकाल बीतने के बाद भी एक निगोद का अनन्तवाँ भाग ही सिद्ध होता है। (स) निगोद असंख्याता हैं और एक-एक निगोद में सिद्धों की अपेक्षा अनन्तगुण अधिक
जीव होते हैं। नारक, तिर्यंच पुरुष व स्त्री, मनुष्य-मानुषी, देव-देवी और सिद्धों का अल्पबहुत्त्वसबसे अल्प मनुष्य स्त्री है क्योंकि वे संख्याता कोड़ाकोड़ी हैं ।
स्त्री की अपेक्षा मनुष्य असंख्याता गुणा है (मनुष्य संमूर्छिम और गर्भज दोनों समझना। मात्र गर्भज लें तो मनुष्य की अपेक्षा स्त्रियाँ ही अधिक हैं। यद्यपि संमूर्छिम मनुष्य नपुंसक है तथापि यहाँ वेद की अविवक्षा करके सामान्यत: मनुष्य जाति का ग्रहण किया गया है ।)
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