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________________ द्वार २६३ ३८४ 2000054 4 020400100840020486448८८८८०७०:550044025252200000000000000000000000000000035000scoomi ce : वमन, नगर की खाल आदि चौदह स्थानों में उत्पन्न होने वाले संमूर्छिम मनुष्य असंख्याता हैं। मनुष्य की अपेक्षा नरक के जीव असंख्यात गुण अधिक हैं । अंगुल-प्रमाण क्षेत्रवर्ती आकाश-प्रदेशों के पहले और तीसरे वर्गमूल को गुणा करने पर जितनी संख्या आती है, उतनी सूची श्रेणियों के आकाश-प्रदेश प्रमाण नरक के जीव हैं। जबकि मनुष्य उत्कृष्ट से भी श्रेणि के असंख्येय भागवर्ती आकाश-प्रदेश की राशि परिमाण है। नारक जीवों की अपेक्षा तिर्यंच स्त्रियाँ असंख्याता गुणा अधिक हैं। क्योंकि सात राज लम्बे और सात राज ऊँचे तथा एक आकाश प्रदेश चौड़े प्रतर के असंख्यातवें भाग में सात राज ऊँची और एक आकाश-प्रदेश चौड़ी जितनी सूची-श्रेणियाँ हैं, उतनी सूची-श्रेणियों के आकाश-प्रदेश परिमाण तिर्यंच स्त्रियाँ होती हैं। तिर्यंच स्त्रियों की अपेक्षा देव असंख्यात गुणा हैं, कारण देवता असंख्यातगुण विस्तृत प्रतर के असंख्यातवें भागवर्ती असंख्यात सूची-श्रेणियों के आकाश प्रदेश परिमाण हैं। देवों की अपेक्षा देवियाँ संख्यात गुणा हैं, कारण देवियाँ उनसे बत्तीस गुणी अधिक हैं। देवियों की अपेक्षा सिद्ध अनंत गुण हैं, क्योंकि वे एक निगोद के अनन्तवें भाग जितने होते हैं। सिद्धों की अपेक्षा तिर्यंच अनन्तगुण हैं, क्योंकि तिर्यंच गति में असंख्यात निगोद का समावेश होता है तथा एक निगोद में सिद्धों की अपेक्षा अनंतगुण जीवराशि है। काया की अपेक्षा अल्प-बहुत्व सबसे अल्प त्रसकायिक जीव हैं। क्योंकि द्वीन्द्रिय आदि ही त्रसकाय हैं। सात राज लम्बे, सात राज चौड़े और एक आकाश-प्रदेश मोटे प्रतर के असंख्यात कोटाकोटि . योजन प्रमाण भाग में स्थित सूची-श्रेणियों के जितने आकाश-प्रदेश हैं, उतने त्रसकायिक जीव हैं। त्रसकाय जीवों की अपेक्षा तैजस्काय के जीव असंख्याता गुणा हैं। ये चौदह राज लोक जितने प्रमाप वाले असंख्यात लोकों के आकाश प्रदेश के तुल्य है। तेजस्काय जीवों से पृथ्वीकाय के जीव विशेषाधिक हैं। पूर्ववत् वे भी असंख्यात लोकों के आकाश-प्रदेश के तुल्य हैं किन्तु पूर्व के असंख्याता की अपेक्षा यह असंख्याता कुछ अधिक समझना । इसी से पृथ्वीकाय के जीव विशेषाधिक होते हैं। पृथ्वीकाय के जीवों की अपेक्षा अप्कायिक जीव विशेष अधिक हैं (पूर्ववत्) । अप्काय जीवों की अपेक्षा वायुकायिक जीव विशेषाधिक हैं (पूर्ववत्) । पूर्वोक्त सभी जीवों की अपेक्षा सिद्ध अनंत गुण है। सिद्धों की अपेक्षा वनस्पति कायिक अनन्त गुणा हैं। वे अनन्त-लोकवर्ती आकाश-प्रदेश के तुल्य वनस्पति जीवों की अपेक्षा सकायिक जीव अधिक हैं, क्योंकि इसमें पृथ्विकाय आदि सभी जीवों का समावेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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