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प्रवचन-सारोद्धार
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सात-सात द्वीप हैं। इस प्रकार चार शाखाओं के कुल मिलाकर ७ x ४ = २८ अन्तरद्वीप हैं। इन २८ अन्तरद्वीपों को चार-चार के समूह में विभक्त करने से सात चतुष्क बनते हैं। प्रथम चतुष्क
दिशा विस्तार
परिधि (i) एकेरूक द्वीप
ईशान-कोण लंबाई-चौड़ाई ९४९ (ii) आभासिक द्वीप
अग्नि-कोण ३०० योजन (ii) वैषणिक द्वीप
नैऋत-कोण जगती से दूरी (iv) नाङ्गलिक द्वीप वायु-कोण ३०० योजन
१२६५
ईशान-कोण अग्नि-कोण नैत्रत-कोण वायु-कोण
लंबाई-चौड़ाई ४०० योजन जगती से दूरी ४०० योजन
F5 ।।
(i)
आदश मुख
१५८१
ईशान-कोण अग्नि-कोण नैत्रत-कोण वायु-कोण
लंबाई-चौड़ाई ५०० योजन जगती से दूरी ५०० योजन
१८९७
दूसरा चतुष्क (i) हयकर्ण
गजकर्ण
गोकर्ण (iv) शष्कुली तीसरा चतुष्क
आदर्श मुख (ii) मेण्ढक मुख (iii) अयोमुख
(iv) गोमुख चौथा चतुष्क
(i) अश्वमुख (ii) हस्तिमुख (iii) सिंहमुख
(iv) व्याघ्रमुख पाँचवाँ चतुष्क
(i) अश्वकर्ण (ii) हरिकर्ण (iii) अकर्ण
(iv) प्रावरण छट्ठा चतुष्क
(i) उल्कामुख (ii) मेघमुख (iii) विद्युन्मुख (iv) विद्युत्दन्त
ईशान-कोण अग्नि-कोण नैऋत-कोण वायु-कोण
लंबाई-चौड़ाई ६०० योजन जगती से दूरी ६०० योजन
२२१३
ईशान-कोण अग्नि-कोण नैत्रत-कोण वायु-कोण
लंबाई-चौड़ाई ७०० योजन जगती से दूरी ७०० योजन
२५२९
ईशान-कोण अग्नि-कोण नैत्रत-कोण वायु-कोण
लंबाई-चौड़ाई ८०० योजन जगती से दूरी ८०० योजन
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