SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ३७७ Poon -विवेचन श्रमणी (शुद्ध ब्रह्मचारिणी) ४. लब्धि-पुलाक क्षपितवेदी (जिनका वेद क्षय हो चुका है) ५. अप्रमत्त-साधु परिहारविशुद्ध संयमी ६. चौदह-पूर्वी आहारक-शरीरी (सभी चौदहपूर्वी आहारकलब्धि संपन्न नहीं होते, इसलिये दोनों को अलग-अलग कहा)। विद्याधर, देव आदि के द्वारा वैर, राग या अनुकम्पावश इनका अपहरण नहीं हो सकता ॥१४१९ ॥ २६२ द्वार: अंतरद्वीप चुल्लहिमवंतपुव्वावरेण विदिसासु सायरं तिसए। गंतूणंतरदीवा तिन्नि सए हुंति विच्छिन्ना ॥१४२० ॥ अउणावन्ननवसए किंचूणे परिहि तेसिमे नामा। एगोरुअ आभासिय वेसाणी चेव नंगूली ॥१४२१ ॥ एएसिं दीवाणं परओ चत्तारि जोयणसयाणि । ओगाहिऊण लवणं सपडिदिसिं चउसयपमाणा ॥१४२२ ॥ चत्तारंतरदीवा हयगयगोकन्नसंकुलीकन्ना। एवं पंचसयाई छससय सत्तट्ठ नव चेव ॥१४२३ ॥ ओगाहिऊण लवणं विक्खंभोगाहसरिसया भणिया। चउरो चउरो दीवा इमेहिं नामेहिं नायव्वा ॥१४२४ ॥ आयंसमिंढगमुहा अयोमुहा गोमुहा य चउरो ए। अस्समुहा हत्थिमुहा सीहमुहा चेव वग्घमुहा ॥१४२५ ॥ तत्तोय आसकन्ना हरिकन्न अकन्न कन्नपावरणा। उक्कमुहा मेहमुहा विज्जुमुहा विज्जुदंता य ॥१४२६ ॥ घणदंत लट्ठदंता य गूढदंता य सुद्धदंता य। वासहरे सिहरिमि य एवं चिय अट्ठवीसा वि ॥१४२७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy