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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३६१ 205505064 9835225683535350 आत्मांगुल का पूर्वोक्त प्रमाप मानने पर भरतचक्रवर्ती, परमात्मा महावीरदेव आदि का अंगुल आत्मांगुल नहीं माना जायेगा, कारण भरतचक्रवर्ती का देहमान अपने अंगुल से १२० अंगुल तथा भगवान महावीरदेव का देहमान अपने अंगुल से ८४ अंगुल था। इससे यह सिद्ध होता है कि जिन आत्माओं का देहमान 'अपने अंगुल से १०८ अंगुल नहीं है उन आत्माओं का अंगुल आत्मांगुल नहीं है,' इतना ही निषेध पर्याप्त नहीं है, परन्तु लक्षण-शास्त्रोक्त स्वरादि लक्षणों से रहित होते हुए न्यूनाधिक देहमान वाले आत्माओं का अंगुल आत्मांगुल नहीं कहलाता इतना कथन पर्याप्त है। इससे भरतचक्रवर्ती तथा परमात्मा महावीरदेव का देहमान हीनाधिक होने पर भी स्वरादि विशेष लक्षण-संयुक्त होने से उनके अंगुल को आत्मांगुल मानने में कोई बाधा नहीं है। ___ (iii) प्रमाणांगुल-सबसे प्रकृष्ट प्रमाण वाला, उत्सेधांगुल से एक हजार गुणा अधिक अंगुल प्रमाणांगुल है । अथवा समस्त लोक व्यवहार के प्रणेता, इस अवसर्पिणी काल में प्रमाणभूत पुरुष युगादिदेव या भरतचक्रवर्ती का अंगुल प्रमाणांगुल है। इस तरह आत्मांगुल और प्रमाणांगुल तुल्य हुआ। प्रश्न –यदि भरतचक्रवर्ती आदि का अंगुल ही प्रमाणांगुल है तो आत्मांगुल व प्रमाणांगुल तुल्य होंगे तथा उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल एक हजार गुणा अधिक नहीं पर चार सौ गुणा अधिक होगा। क्योंकि भरतचक्रवर्ती आत्मांगुल से १२० अंगुल प्रमाण और उत्सेधांगुल से ५०० धनुष प्रमाण थे। एक धनुष में ९६ उत्सेधांगुल होने से ५०० धनुष के ५०० x ९६ = ४८,००० उत्सेधांगुल हुए। ४८,००० उत्सेधांगुल में १२० आत्मांगुल (भरतचक्रवर्ती का देहमान) का भाग देने पर ४८,००० * १२० = ४०० उत्सेधांगुल हुए। इस प्रकार एक प्रमाणांगुल में ४०० उत्सेधांगुल होने से उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल १००० गुणा अधिक कैसे होगा? उत्तर-आपका कथन सत्य है परन्तु इसे इस तरह समझना होगा। प्रमाणांगुल की मोटाई ढाई उत्सेधांगुल प्रमाण है और इतनी मोटाई वाला प्रमाणांगुल, उत्सेधांगुल से ४०० गुणा ही अधिक बड़ा होता है। परन्तु ढाई उत्सेधांगुल मोटाई को प्रमाणांगुल की ४०० उत्सेधांगुल प्रमाण लंबाई से गुणा करने पर ४०० x २- ढाई = १००० गुणा अधिक बड़ी प्रमाणांगुल की सूची होती है। सारांश यह है कि २५ उत्सेधांगुल मोटाई वाले प्रमाणांगुल की ३ श्रेणियाँ बनाना। इनमें दो श्रेणियाँ ४०० उत्सेधांगुल लंबी तथा १ उत्सेधांगुल मोटी बनाना। तीसरी श्रेणी ४०० उत्सेधांगुल लंबी व - उत्सेधांगुल मोटी बनाना। उसे मध्य से काटकर परस्पर जोड़ देना जिससे वह २०० उत्सेधांगुल लंबी व १ उत्सेधांगुल मोटी श्रेणी बन जाये। इन तीनों श्रेणिओं को लंबाई में जोड़ने से १००० उत्सेधांगुल लंबी तथा १ उर धांगुल मोटी प्रमाणांगुल की १ सूची बनती है। इसकी अपेक्षा से ही प्रमाणांगुल उत्सेधांगुल से १००० गुणा अधिक होता है। वस्तुत: तो उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल ४०० गुणा ही अधिक है। पृथ्वी-पर्वत-विमान आदि का प्रमाप ४०० उत्सेधांगुल लम्बे व ढाई अंगुल मोटे प्रमाणांगुल से ही मापा जाता है, न कि सूचीकृत प्रमाणांगुल से। ऐसी परम्परा है। तत्त्व केवलीगम्य है। भगवान महावीरदेव का आत्मांगुल उत्सेधांगुल से दुगुना है। ऐसा पूर्वाचार्यों का कथन है। कारण भगवान महावीर का देहमान ८४ आत्मांगुल प्रमाण तथा उत्सेधांगुल से ७ हाथ प्रमाण था। १ हाथ २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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