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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३५५ Contact उपशम श्रेणि-सर्वविरति की प्राप्ति के पश्चात् संख्यातसागर-प्रमाण कर्मस्थिति क्षय होने पर प्राप्त होती है। क्षपक श्रेणि-उपशम श्रेणि के पश्चात् संख्यात सागर-प्रमाण कर्मस्थिति का क्षय होने पर क्षपक श्रेणि प्राप्त होती है तथा आत्मा उसी भव में मोक्ष चला जाता है। पूर्वोक्त कथन अप्रतिपतित सम्यक्त्वी , देव और मनुष्यभव में संसरण करने वाले आत्मा को उत्तरोत्तर प्राप्त होने वाले मनुष्य भवों की अपेक्षा से समझना। तीव्र शुभ परिणाम द्वारा जिनके विपुल कर्म क्षय हो चुके हैं ऐसे आत्मा को तो एक भव में ही दो में से एक श्रेणि, सम्यक्त्व, देशविरति और सर्वविरति इन चारों की प्राप्ति होती है। कहा है एवं अप्परिवडिए सम्मत्ते देवमणुयजम्मेसु । अन्नयरसेढ़िवज्जं, एगभवेणं च सव्वाइं॥ . सिद्धान्त के मतानुसार एक भव में दो श्रेणियाँ नहीं होती। एक आत्मा एक भव में एक ही श्रेणि कर सकता है। कहा है कि-अपतित सम्यक्त्वी , मनुष्य व देवभव में क्रमश: पुन: पुन: संसरण करने वाला आत्मा एक भव में दो में से एक श्रेणी, देशविरति, सर्वविरति आदि सभी भावों को प्राप्त करता है ॥१३८४ ॥ २५० द्वार: मानव के अयोग्य जीव सत्तममहि नेरइया तेऊ वाऊ अणंत रूवट्टा। न लहंति माणुसत्तं तहा असंखाउया सव्वे ॥१३८५ ॥ -गाथार्थकौन से जीव मरणोपरांत मनुष्य नहीं बनते?-सातवीं नरक के नैरइये, तेउकाय, वायुकाय तथा असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच और मनुष्य मरकर मनुष्य नहीं बनते ॥१३८५ ।। -विवेचन(क) सातवीं नरक का नेरईया (नारक) इतने जीव (ख) तेउकाय के जीव मर (ग) . वायुकाय के जीव कर (घ) युगलिक मनुष्य और युगलिक तिर्यंच मनुष्य नहीं बनते । शेष देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारक मनुष्य में उत्पन्न होते हैं ॥१३८५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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